Dussehra 2025: दशहरा 2 अक्टूबर, गुरुवार को है. इस दिन देश भर में रावण से जुड़ी कई अनोखी और दिलचस्प परंपराएं निभाई जाती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान राम ने रावण को मारने के बाद लक्ष्मण को उससे ज्ञान सीखने के लिए क्यों भेजा? क्योंकि राम जानते थे कि युद्ध भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई अहंकार और ज्ञान के बीच होती है और रावण उस लड़ाई में हारने का सबसे बड़ा उदाहरण था. राम चाहते थे कि लक्ष्मण दुश्मन से नहीं, बल्कि उसकी गलतियों से सीखे.
जब भगवान राम ने युद्ध में रावण को मारा, तो रावण का शरीर युद्धभूमि पर पड़ा था. रावण कोई साधारण राक्षस नहीं था; वह शिव का परम भक्त, बहुत ज्ञानी, वेदों का ज्ञाता और महान विद्वान था. उसे ब्रह्मा से वरदान मिला था और वह नैतिकता, आयुर्वेद, शास्त्रों और ज्योतिष का भी जानकार था.
भगवान राम को व्यर्थ में ‘अधिकार का प्रतीक’ नहीं कहा जाता; वे न केवल अपने शत्रुओं का, बल्कि रावण जैसे महान विद्वान का भी सम्मान करते थे. वे चाहते थे कि लक्ष्मण दुश्मन की छवि से परे देखे और उसके भीतर छिपी ज्ञान की रोशनी को समझे.
राम का आदेश:
जब रावण युद्धभूमि पर मर रहा था, तो राम ने लक्ष्मण से कहा:
गुरुं प्रच्छ सुशास्त्रज्ञं रावणं परमं द्विजम्।
नान्यः पण्डिततामेति यथा रावणपुंगवः॥
(रामायण)
अर्थ: लक्ष्मण! जाओ वेदों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मण रावण से कुछ सीखो. अब वह हमारा शत्रु नहीं है. वह अब एक महान ऋषि है, जिसका ज्ञान अतुलनीय है.
लक्ष्मण को भगवान राम का आदेश सुनकर आश्चर्य हुआ. “उस राक्षस से सीखो जिसने सीता को हरण किया था, जिस पर हमने तीर चलाए थे?” रावण मरणासन्न था, फिर भी लक्ष्मण ने उससे अंतिम शिक्षा ली. रावण के तीन शब्द, जिन्हें आज भी ज्ञान का सार माना जाता है, वे क्या थे? आइए जानें…
लक्ष्मण पहले रावण के पास गए और उससे प्रश्न पूछे. रावण चुप रहा. फिर राम ने लक्ष्मण से कहा, “अगर तुम ज्ञान प्राप्त करना चाहते हो, तो उसे ‘शत्रु’ न समझकर ‘गुरु’ समझो और उसके चरणों में बैठो.” फिर लक्ष्मण बैठ गए, और रावण ने तीन शब्द कहे:
- “कभी भी अच्छे काम न टालें.
- बुरे काम हमेशा जितना हो सके उतना टालें.
- कभी भी शत्रु को कम न समझें.”
इन तीन गलतियों की वजह से रावण का पतन हुआ, और इन तीन सीखों से लक्ष्मण को जीवन का सच्चा अर्थ पता चला.
रावण के साथ केवल उसका शरीर खत्म हुआ… उसका ज्ञान नहीं!
राम जानते थे कि रावण अहंकारी होने के बावजूद एक महान विद्वान, रणनीतिकार और शिव का भक्त था। उसे मारना था, लेकिन उसका ज्ञान बेकार नहीं जाना चाहिए था.
यह सोच ही राम को आदर्श बनाती है – दया के साथ न्याय और दुश्मन से भी सीखना.
आज यह सीख क्यों ज़रूरी है?
आज जब विचारधाराएँ टकराती हैं और ‘असहमति’ को ‘दुश्मनी’ समझा जाता है, तो राम का तरीका हमारा सबसे बड़ा सबक है. यह हमें सिखाता है कि बोलने वाले पर नहीं, बल्कि कही गई बात पर ध्यान दें. भले ही वह रावण ही क्यों न हो!
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