सनातन धर्म में बड़ों के पैर छूना सम्मान और आदर का प्रतीक माना जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोग इसे पुण्य नष्ट करने वाला भी मानते हैं? क्या सच में पैर छूने से आपका पुण्य खत्म हो जाता है? इस विषय पर वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने अपनी स्पष्ट और सरल राय दी है. आइए जानते हैं, उनके अनुसार इस पर कितनी सच्चाई है और हमें कैसे आचार करना चाहिए.
पैर छूना सही है या गलत?
हाल ही में, प्रेमानंद महाराज के एक प्रवचन के दौरान एक व्यक्ति ने पूछा, “क्या किसी के पैर छूने से हमारा पुण्य नष्ट हो जाता है?” इस पर उन्होंने कहा, “अगर आप हमें ऐसा करने पर मजबूर करते हैं… तो हमें अपने पैर छूने की इच्छा नहीं होती। अगर हम छू भी लें तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. अगर हम प्रसन्न हैं और आपके पैर छूना चाहते हैं, तो हमारी भक्ति नष्ट हो जाएगी. अगर हमारी इच्छा नहीं है और हम उस व्यक्ति को पहले ही प्रणाम कर चुके हैं जो हमारे पैर छूने आ रहा है, और अगर हमारी इच्छा नहीं भी है, तो भी अगर वह हमारे पैर छू भी लेता है, तो हमारा पुण्य नष्ट नहीं होगा. पैर छूना और प्रणाम करना एक ही बात है.”
प्रेमानंद महाराज ने यह तर्क दिया
प्रेमानंद महाराज ने आगे कहा, “लाखों लोग झुकते हैं. इसलिए, उन लाखों लोगों में से, हम अपने भगवान को देखकर झुकते हैं. वह मेरे भगवान हैं, और उनके रूप के कारण, मेरा कोई भी पुण्य नष्ट नहीं होगा. अगर हम सोचते हैं कि मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ, तो हमारी भक्ति कम हो जाएगी. सब कुछ एक विचार है. यदि विचार बदल जाता है, तो पुण्य नष्ट हो जाएगा. यदि विचार सही रहता है, तो पुण्य नष्ट नहीं होंगे. भगवान सभी में मौजूद हैं, और यह उनकी श्रद्धा है जो आपके चरणों को छू रही है, लेकिन आप इसके योग्य नहीं हैं, और यह आपके भीतर से आना चाहिए. मेरे भगवान सभी में मौजूद हैं. उन्होंने स्पर्श किया, और मैंने पहले प्रणाम किया.” हमें कोशिश करनी चाहिए कि कोई भी हमारे पैर न छुए. अगर कोई हमें ऐसा करने के लिए मजबूर करने की कोशिश करता है, तो हमें दिव्य भावना के साथ उन्हें प्रणाम करना चाहिए.