Khatu Shyam Ji Birthday On Today Dev Uthani Ekadashi 2025: आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और आज के दिन देवउठनी एकादशी का व्रत किया जाता है. इस दिन जगत के पालनहार श्री हरि 4 माह के बाद योगनिद्रा से जागते है और इस दिन से ही सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है. कहा जाता है कि आज देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी करने वाले व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट खत्म हो जाता है. इसके अलावा आज बाबा खाटू श्याम जी का जन्म दिन है, जिन्हें भक्त हारे का सहारा कहते हैं और कलियुग के देवता मानते हैं. बाबा खाटू श्याम जी भगवान श्रीकृष्ण का कलयुगी अवतार हैं ऐसे में देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और खाटू श्याम जी पूजा करने से आपके जीवन के सारे कष्ट दूर हो सकते हैं.
खाटू श्याम जी है अपने भक्तों के हारे का सहारा
कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा भाव से खाटू श्याम जी की पूजा करता है और अपनी इच्छा उनके सामने रखता हैं, तो वो अपने हर भक्त की मनोकामना को पूरा करते हैं और हारे हुए व्यक्ति का भी सहारा बनते हैं. चलिए जानते हैं कि बाबा खाटू श्याम जी के जन्मदिन पर उनसे जुड़ी कुछ खास बातें और क्यों हो रही है कलयुग में खाटू श्याम जी की पूजा?
क्यों कलियुग में खाटू श्याम की हो रही है पूजा
बाबा खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है, वह पांडुपुत्र भीम के पौत्र थे और उनकी माता का नाम हिडिम्बा था. पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के दौरान, खाटू श्याम जी ने सीधे तौर पर किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं किया, बल्कि वो कमजोर पक्ष की ओर से लड़ने के अपने सिद्धांत का पालन किया. चूंकि भगवान श्री कृष्ण चाहते थे कि युद्ध जल्दी खत्म हो. लेकिन बर्बरीक की शक्ति से युद्ध बहुत लंबा खिंचता, इसलिए उन्होंने बर्बरीक से उनका शीश दान के रूप में माँगा, जिसे उन्होंने धर्म और जन-कल्याण के लिए सहर्ष दे दिया. महाभारत युद्ध में खाटू श्याम जी के महान बलिदान के बाद, भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें कलियुग में ‘श्याम’ नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था, इसलिए आज के समय में उन्हें खाटू श्याम के रूप में पूजा जाता है और भक्त उनकी पूजा करते हैं. लोग उन्हें “हारे के सहारा” मानते हैं. भगवान श्रीकृष्ण को शीश दान देने के कारण खाटू श्याम जी को शीश दानी और मोरछीधारी के नाम से भी जाना जाता है. भक्तों का मानना है किबाबा श्याम सभी की मुरादें पूरी कर सकते हैं और रंक को भी राजा बना सकते हैं.
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