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Ahoi Asthami 2025: अहोई अष्टमी पर करें इस कथा का पाठ, संतान पर बनी रहेगी अहोई माता की कृपा, जानें पूजा विधि

Ahoi Asthami 2025: अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. ये निर्जला उपवास होता है और इस दिन अहोई माता की कथा भी सुनी जाती है. इस साल ये त्योहार 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा और तारों को जल अर्पित करके व्रत खोला जाता है.

By: Shivi Bajpai | Published: October 11, 2025 3:51:35 PM IST



Ahoi Asthami Ki Katha: अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है. साल 2025 में 13 अक्टूबर को ये व्रत रखा जाता है. इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए और माताएं अपने बच्चों की निरोगी काया के लिए व्रत करती हैं.  शाम के समय तारे निकलने के बाद अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है. अहोई माता की विधिवत पूजा, कथा और आरती के साथ पूजा को संपन्न किया जाता है. 

अहोई अष्टमी की कथा 

अहोई अष्टमी का अर्थ ‘अनहोनी को होनी बनाना’ होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, पुराने समय में एक साहूकार था, जिसके सात और एक बेटे बेटी थी. साहूकार के बेटे-बेटियों की शादियां भी हो चुकी थी.  एक बार उसकी बेटी अपने मायके आई और उसकी भाभियां घर लीपने के लिए मिट्टी लेने जंगल जाने लगी, तो एकलौती उनकी ननद भी उनके साथ थी. 

साहूकार की बेटी जिस तरह से मिट्टी काट रही थी, वहां साही अपने 7 बेटों के साथ रहती थी. इस दौरान अनजाने में बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया और फिर स्याहु गुस्से में बोली कि मैं तुम्हारी कोख बाधूंगी. इस डर से साहूकार की बेटी रोने लगी और अपनी सभी भाभियों से विनती करने गी कि वह उसकी कोख बंधने से बचा ले. 

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सभी भाभियों ने इससे इनकार कर दिया, लेकिन उसकी सबसे छोटी भाभी ननद ऐसा करने के लिए तैयार हो जाती है. स्याहु के श्राप के कारण छोटी भाभी की संतान पैदा होने के सात दिन के भीतर ही खत्म हो जाती थी. इस तरह उसकी सात संतानों की मृत्यु हो गई. आखिरकार उसने इस बारे में पंडित जी से उपाय पूछा, तब उन्होंने बताया कि उसे सुरही गाय की सेवा करनी चाहिए. अगर वो ऐसा करती है तो उसे जल्दी ही खुशखबरी मिल सकती है. इस तरह से खुश होकर एक दिन सुरही उसे स्याहु के पास ले जाती है. फिर वह स्याहु की सेवा करती है और स्याहु उससे प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद दे देती है. 

इस तरह से छोटी बहू को जीवनभर मां बनने का सुख प्राप्त हो जता है. ऐसा कहा जाता है कि तभी से कार्तिक माह की अष्टमी पर स्याहु का चित्र बनाकर उसकी विधिवत पूजन करने की परंपरा है. इसे अहोई आठे भी कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अहोई माता, देवी पार्वती का ही स्वरूप है, जो संतानों की रक्षा करती हैं. इसलिए महिलाएं इस व्रत को रखती हैं. 

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