एक ऐसा गांव जहां इंसानों की तरह बंदर का हुआ अंतिम संस्कार, 11 लोगों ने किया पिंडदान

Rajasthan News: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के छोटे से गांव धीरजी का खेड़ा में कुछ ऐसा हुआ, जिसने भावनाओं की सारी सीमाएं पार कर दीं. यहां एक बंदर की मौत पर गांव ने वो किया

Published by Mohammad Nematullah

Rajasthan News: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के छोटे से गांव धीरजी का खेड़ा में कुछ ऐसा हुआ, जिसने भावनाओं की सारी सीमाएं पार कर दीं. यहां एक बंदर की मौत पर गांव ने वो किया, जो शायद आजकल अपनों के लिए भी मुश्किल होता है. उसका अंतिम संस्कार पूरे मान-सम्मान और वैदिक रीति-रिवाजों के साथ किया गया. श्राद्ध पक्ष के पहले दिन, गांव के सबसे शांत और प्रिय ‘बंदर’ ने हमेशा के लिए आंखें मूंद लीं. लेकिन उसकी विदाई किसी जानवर की नहीं, बल्कि एक आत्मीय सदस्य की तरह हुई. पूरे ढोल-नगाड़ों के साथ निकली उसकी अंतिम यात्रा और गांव भर के लोग नम आंखों और हाथ जोड़ना के साथ उसे अंतिम विदाई देने पहुंचे. उसका पार्थिव शरीर उसी मंदिर ले जाया गया, जहां वह रोज़ श्रद्धा से बैठा करता था. वैदिक मंत्रों के बीच, पूरी विधिपूर्वक उसका अंतिम संस्कार किया गया.

11 भक्तों ने करवाया मुंडन

गांव के 11 हनुमान भक्तों ने उसे परिवार का हिस्सा माना. जैसे इंसान की मौत पर मुंडन होता है, वैसे ही उन्होंने सिर मुंडवाया और पिंडदान भी किया. सोमवार को उसकी अस्थियां मातृकुंडिया जैसे पवित्र स्थल पर विसर्जित की गईं. इसके बाद ‘पगड़ी रस्म’ और विशाल भंडारे का आयोजन हुआ, जिसमें पूरे गांव को आमंत्रित किया गया। करीब 900 लोग इस आयोजन का हिस्सा बने.

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वो सिर्फ बंदर नहीं था, मंदिर का भक्त और गांव का साथी था

गांव के लोगों के अनुसार, यह बंदर पिछले दो साल से खाकल देव जी के मंदिर में रहता था. वो रोज़ आरती में शामिल होता था, बच्चों के साथ खेलता, बड़ों के पास जाकर बैठता था. इतना ही नही बल्कि वो कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया, न कभी झपट्टा, न कभी काटा. वो बच्चों का दोस्त, बुजुर्गों के साथ चलने वाला, और सबके दिलों का दुलारा बन गया था. गांव वालों का कहना है कि यह सिर्फ एक बंदर नहीं था, हमारे भगवान हनुमान का रूप था. गांव के हीरालाल रायका पंचायत समिति सदस्य प्रतिनिधि ने इस पूरे आयोजन में भाग लिया और कहा “यह घटना आज के समाज को पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान का संदेश देती है”

जब इंसान, इंसानियत से बड़ा हो जाए

धीरजी का खेड़ा गांव ने ये दिखा दिया कि संवेदनाएं जाति, रूप, वाणी या प्रजाति की मोहताज नहीं होतीं. जहां एक ओर दुनिया स्वार्थी होती जा रही है, वहीं यह गांव एक बंदर की आत्मा को वो सुकून दे गया, जो शायद इंसानों को भी नसीब नहीं होता.

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