Rajasthan High Court: राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में एक बड़ा फैसला लेते हुए साइबर अपराध के आरोप में एक 19 साल के आरोपी को सशर्त ज़मानत देते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया. इस सख्त आदेश में न्यायालय ने न सिर्फ जमानत दी है बल्कि आरोपी की डिजिटल गतिविधियों पर पूरी तरह से सख्त रोक भी लगाए हैं. यह फैसला साइबर अपराधों में युवाओं की बढ़ती संलिप्तता को ध्यान में रखते हुए दिया गया है, जिससे भविष्य में ऐसे मामलों में कमी देखने को मिल सके.
आखिर क्या है पूरा मामला
दरअसल, यह पूरा मामला इसी साल का है जब आरोपी पर साइबर अपराध से जुड़ी गतिविधियों में शामिल होने के कई गंभीर आरोप लगे थे. आरोपी पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66, तथा राजस्थान सार्वजनिक जुआ अध्यादेश, 1949 की धारा 13 के तहत मामला दर्ज कर कार्रवाई की गई थी. इसके साथ ही आरोप यह भी था कि आरोपी ने कई बैंक खातों का दुर्भावनापूर्वक तरीके से इस्तेमाल किया था और इन खातों के माध्यम से अनधिकृत ऑनलाइन लेन-देन भी किए थे.
क्या थी कोर्ट की अहम टिप्पणी ?
न्यायमूर्ति समीर जैन ने इस बात को ध्यान में रखा कि आवेदक केवल 19 साल का है और “अपनी किशोरावस्था के आखिरी चरण में” है. इसके साथ ही, वह 15 जुलाई 2025 से हिरासत में था और मामले का (चार्जशीट) पहले ही दायर किया जा चुका है. इसलिए अदालत ने यह मानते हुए कि वह भविष्य में सुधार की दिशा में अग्रसर हो सकता है, उसे सशर्त ज़मानत पर कुछ सख्त आदेशों के साथ बरी कर दिया.
किस प्रकार है ज़मानत की प्रमुख शर्तें
1. बैंक खातों की पारदर्शिता
आरोपी को अपने नाम से संचालित सभी बैंक खातों का पूरा डाटा जांच एजेंसी को देना होगा.
2. एक ही बैंक खाता उपयोग
उसे सिर्फ अपने वैध व्यक्तिगत कामों के लिए एक ही बैंक खाते का इस्तेमाल करने की अनुमति होगी
3. कैसी है मोबाइल नंबर की सीमाएं
आरोपी केवल वहीं सिम कार्ड इस्तेमाल कर सकेगा जो उसके आधार से रजिस्टर्ड होगा. कोई अतिरिक्त या फिर किसी प्रकार का अनरजिस्टर्ड नंबर होने पर उसे पुलिस स्टेशन में जमा करना होगा.
4. मासिक उपस्थिति
आरोपी को हर महीने की 5 तारीख को स्थानीय पुलिस थाने में उपस्थिति दर्ज करानी होगी.
5. सोशल मीडिया प्रतिबंध
मुकदमे की अवधि तक उसे टेलीग्राम, व्हाट्सएप या फिर किसी भी सोशल मीडिया ऐप का इस्तेमाल करने पर रोक लगाया गया है.
6. अदालत का दृष्टिकोण
अदालत ने यह भी माना कि आवेदक भले ही आरोपी हो, परंतु उसकी कम उम्र और सुधार की संभावना को देखते हुए उसे जमानत का मौका दिया जा सकता है. साथ ही, अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि आवेदक ऐसे क्षेत्र से संबंधित है, जहां से साइबर अपराधों की घटनाएं ज्यादा देखने को मिलती हैं. इसलिए सख्त शर्तें लगाकर यह सुनिश्चित किया गया कि आरोपी आगे किसी अवैध गतिविधि में न ही पड़े.
यह फैसला इस बात का उदाहरण देता है कि अदालतें अब साइबर अपराधों के मामलों में संतुलित फैसला अपना रही हैं. जहां युवा अभियुक्तों को सुधार का मौका दिया जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ तकनीकी दुरुपयोग पर सख्त निगरानी भी रखी जा रही है. अदालत का यह आदेश साइबर कानून के क्षेत्र में सावधानी, पुनर्वास और न्याय के बीच संतुलन का संदेश देता है.