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Ajab Gajab News: साल में एक बार लगती है अद्भुत अदालत, जिसमें सांप की आत्मा खुलकर बताती है अपने काटने की वजह और हनुमानजी करते हैं अंतिम फैसला

Ajab Gajab News: हर साल दिवाली के दूसरे दिन सीहोर में एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जो किसी को भी हैरान कर देती है. इसे नागराज की अदालत कहते हैं. इस अदालत में हनुमानजी न्यायाधीश होते हैं और सांपों की आत्माएं प्रकट होती हैं. वे बताती हैं कि उन्होंने क्यों काटा!

By: Shivashakti Narayan Singh | Published: October 23, 2025 5:49:41 PM IST



Ajab Gajab News: मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के लसूड़िया परिहार गांव में दिवाली के दूसरे दिन नागराज की अदालत लगती है. यह परंपरा लगभग 100 सालों से चली आ रही है. इस परंपरा में, सर्पदंश से पीड़ित लोग अपने काटने का कारण जानने आते हैं. ग्रामीणों का मानना है कि नाग देवता पीड़ित के शरीर में प्रवेश करते हैं और बताते हैं कि उन्होंने क्यों काटा. खास बात यह है कि इस अदालत में सांपों की आत्माएं हनुमानजी को न्यायाधीश मानकर प्रकट होती हैं. ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही सुनवाई शुरू होती है, जब ढोलक, मंजीरे और मटकी की थाप पर विशेष मंत्र गाए जाते हैं, तो नाग देवता की आत्माएं कुछ पीड़ितों के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं, जिससे वे सांपों की तरह डोलने लगते हैं.

हनुमान जी के सामने मानते हैं गलती

पीड़ित की आवाज धीरे-धीरे बदलती है, और फिर वे किसी के घर के नष्ट होने, किसी के कुचले जाने, या किसी के अकारण मारे जाने का वर्णन करते हैं. नाग देवता स्वयं बताते हैं, “मैं वही सांप हूं जिसने उसे काटा था.” वह हनुमान के सामने अपनी गलती स्वीकार करते हैं और फिर किसी को नुकसान न पहुँचाने का वचन देते हैं.

सदियों पुरानी है परंपरा

गांव के गन्नू महाराज त्यागी के अनुसार, उनका परिवार पीढ़ियों से इस परंपरा का पालन करता आ रहा है. वे साल भर सर्पदंश का इलाज करते हैं, लेकिन दिवाली के दूसरे दिन, वे विशेष मंत्रों, हवन और पूजा-अर्चना के साथ “नागराज की अदालत” (नागराज का दरबार) का आयोजन करते हैं.इस दिन, मंदिर में “कंडी” नामक एक पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाया जाता है. इसकी धुन पूरे परिसर में गूंजती है. कहा जाता है कि इस धुन के बीच साँप की आत्मा प्रकट होती है. जैसे-जैसे धुन तेज़ होती जाती है, पीड़ित के चेहरे के भाव बदल जाते हैं, मानो कोई अलौकिक शक्ति प्रकट हो गई हो.

किसने की परंपरा की शुरूवात

ग्रामीणों के अनुसार, इस परंपरा की शुरुआत चिन्नोटा से यहां आए संत मंगलदास महाराज ने की थी. उन्होंने लोगों को “गुरु मंत्र” देकर सर्प-धारण की प्रथा शुरू की. आज भी मंदिर में उनकी समाधि बनी हुई है और भक्तों का मानना है कि उनकी कृपा से ही यह अनुष्ठान सफल होता है. कहा जाता है कि जिन लोगों का पहले उपचार हो चुका है, वे भी इस दिन पुनः प्रकट होते हैं. उनके शरीर और स्वर में सर्प की आत्मा प्रकट होती है. कुछ लोग चौंक जाते हैं, तो कुछ श्रद्धा से हाथ जोड़कर देखते हैं. फिर भी, नागराज का दरबार आज भी लसूड़िया परिहार गांव का एक विशेष स्थल है.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. inkhabar इसकी पुष्टि नहीं करता है

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