रांची, झारखण्ड से मनीष मेहता की रिपोर्ट
Karma Puja: प्रकृति आधारित आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक करमा पूजा झारखंड में बड़े ही धूमधाम से मनाई गई। राजधानी रांची समेत राज्य के विभिन्न जिलों में आदिवासी समुदाय ने पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ करमा पर्व का आयोजन किया। अखरा में पाहन की अगुवाई में करम डाल की पूजा की गई और जावा की अर्चना कर अच्छी फसल, खुशहाली और भाई-बहन के रिश्ते की मजबूती की कामना की गई।
विश्वविद्यालय के जनजातीय भाषा विभाग में करमा उत्सव का विशेष आयोजन
राजधानी रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय भाषा विभाग में करमा उत्सव का विशेष आयोजन हुआ। इस मौके पर छात्रों ने ढोल-नगाड़ों की थाप पर पारंपरिक गीत और नृत्य प्रस्तुत किए। पारंपरिक पोशाक में सजे युवाओं और युवतियों की प्रस्तुति ने पूरे वातावरण को उल्लास और उत्सव से भर दिया। करमा पर्व की सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता को जीवंत करने वाली इन प्रस्तुतियों ने उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
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इस अवसर पर राज्य सरकार के मंत्री चमरा लिंडा भी मौजूद रहे। उन्होंने कहा, “करमा पर्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति संरक्षण और संतुलित जीवन का संदेश भी देता है। आदिवासी समाज की परंपराओं में प्रकृति की पूजा और उसके संरक्षण का भाव गहराई से जुड़ा हुआ है।”
प्रकृति के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने का प्रयास
करमा पूजा के मौके पर पूरे राज्य में विशेष उत्साह देखने को मिला। गांवों और शहरों के अखरों में महिलाओं और युवाओं ने पूरी रात करमा गीत गाए और नृत्य करते हुए प्रकृति के प्रति अपनी आस्था प्रकट की। वहीं, कई जगहों पर सामाजिक संगठनों और विश्वविद्यालयों ने करमा पर्व के सांस्कृतिक महत्व पर विचार गोष्ठी और विशेष आयोजन किए।
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करमा पर्व राज्य की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा
झारखंड में करमा पूजा सिर्फ धार्मिक उत्सव भर नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता और भाईचारे का पर्व भी है। इस अवसर पर भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता और फसल की समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है। यही वजह है कि करमा पर्व राज्य की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा माना जाता है।

