उत्तर प्रदेश के चर्चित उन्नाव रेप केस में पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत की उम्मीद थी लेकिन कोर्ट ने उन्हें बड़ा झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने सेंगर की जमानत याचिका और सजा के निलंबन (Suspension of Sentence) दोनों पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने सीबीआई की दलीलों को सुनने के बाद यह साफ कर दिया कि इस जघन्य अपराध में फिलहाल कोई राहत नहीं दी जा सकती। जिसके बाद यह फैसला सुनाया गया है.
जमानत और सजा के निलंबन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त रोक
इस मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने मामले की गंभीरता पर जोर देते हुए ये स्पष्ट किया कि निचली अदालत ने सेंगर को IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट की धारा 5/6 के तहत दोषी पाया है. आपको बता दें कि सेंगर की ओर से सजा पर रोक लगाने और जमानत की मांग की गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया और उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया गया.
बेहद जघन्य कृत्य है यह मामला
अदालत में SG तुषार मेहता ने मामले को रखते हुए कहा कि यह 15 वर्षीय बच्चे से जुड़ा एक अत्यंत जघन्य मामला है. तुषार नेहता ने कोर्ट में यह दलील दी कि पीड़िता नाबालिग थी और ऐसे मामलों में कानून बहुत सख्त है और सजा कठोर है. SG ने कोर्ट को याद दिलाया कि आईपीसी की धारा 376(2)(i) के तहत यदि अपराध किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है जो ‘प्रभुत्वशाली’ है, तो न्यूनतम सजा 20 वर्ष है, जिसे आजीवन कारावास तक भी बढ़ाया जा सकता है.
क्या विधायक (MLA) ‘लोक सेवक’ की श्रेणी में है?
सुनवाई का सबसे अहम हिस्सा ‘लोक सेवक’ (Public Servant) की परिभाषा पर बहस रही. CBI की दलील पर SG ने तर्क दिया कि POCSO कानून में ‘लोक सेवक’ की परिभाषा को संदर्भ के अनुसार समझा जाना चाहिए. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे ड्यूटी पर पुलिसकर्मी या सेना का अधिकारी ‘लोक सेवक’ है, वैसे ही एक विधायक भी समाज में प्रभुत्व रखता है वह एक सेवक है. CJI की टिप्पणी में कहा गया कि मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने इस पर सहमति जताते हुए पूछा कि यदि कोई व्यक्ति मदद के लिए विधायक के पास आता है, तो क्या उसे विधायक की ‘प्रभावशाली स्थिति’ नहीं माना जाएगा?
सजा और POCSO की व्याख्या पर बहस
CJI ने सीबीआई से पूछा कि क्या पीड़िता के नाबालिग होने पर ‘लोक सेवक’ की अवधारणा अप्रासंगिक हो जाती है? इस पर SG ने स्पष्ट किया कि पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट (Penetrative Sexual Assault) एक खुला अपराध है और संशोधन के बाद इसे और भी गंभीर बना दिया गया है. SG ने कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट ने POCSO अधिनियम की धारा 42A पर ध्यान नहीं दिया जो विशेष रूप से बच्चों के हितों की रक्षा करती है. उन्होंने मांग की कि पीड़ित बच्चे के न्याय को देखते हुए हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाई जाए जिसमें आरोपी को रियायत मिल सकती थी.
विधायिका की मंशा
CJI ने सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि कानून में किए गए संशोधनों से यह स्पष्ट है कि हमारी विधायिका ऐसे अपराधों को समाज के मूल्यों के खिलाफ मानती है. उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों को पूरी गंभीरता के साथ लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरे समाज के विश्वास पर चोट है.