Death Penalty In India: फांसी की सजा के विकल्प के रूप में वैकल्पिक तरीकों की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा उस सुझाव का विरोध करने पर खेद व्यक्त किया जिसमें मृत्युदंड की सजा पाए दोषियों को फांसी के विकल्प के रूप में घातक इंजेक्शन (lethal injection) चुनने का विकल्प दिया जाना चाहिए. पीठ ने टिप्पणी की कि केंद्र समय के साथ हुए बदलावों के साथ तालमेल बिठाने को तैयार नहीं दिख रहा है.
लीथल इंजेक्शन ज्यादा अधिक मानवीय – सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के जवाबी हलफनामे के अनुसार, दोषियों को ऐसा विकल्प देना “व्यवहार्य” नहीं हो सकता. अदालत की यह टिप्पणी उन तर्कों के जवाब में आई है जिनमें कहा गया था कि फांसी से लंबे समय तक दर्द और पीड़ा होती है, जबकि घातक इंजेक्शन को तेज और अधिक मानवीय माना जाता है.
दोषियों को चुनने की अनुमति मिले
सुनवाई के दौरान, जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने अदालत से आग्रह किया कि वह सरकार को फांसी के बजाय अधिक मानवीय विकल्प के रूप में घातक इंजेक्शन अपनाने का निर्देश दे. उन्होंने आगे सुझाव दिया कि कम से कम दोषियों को दोनों तरीकों में से एक चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए. मल्होत्रा ने बताया कि अमेरिका के 50 में से 49 राज्य पहले ही घातक इंजेक्शन का इस्तेमाल शुरू कर चुके हैं, और इसे “त्वरित, सभ्य और मानवीय” बताया, जबकि फांसी “क्रूर, बर्बर और लंबी अवधि तक चलने वाली सजा है, जिसमें शरीर को अक्सर 40 मिनट तक रस्सी पर लटका कर रखा जाता है.”
इस पर, न्यायमूर्ति मेहता ने टिप्पणी की कि केंद्र सरकार अभी बदलाव के लिए तैयार नहीं है, जबकि दुनिया भर के समाज और न्याय प्रणालियाँ मृत्युदंड के प्रति अपने दृष्टिकोण को आधुनिक बना रही हैं.
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केंद्र ने बताया नीतिगत मुद्दा
केंद्र की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सोनिया माथुर ने दोहराया कि यह मुद्दा एक नीतिगत निर्णय से जुड़ा है और इस संबंध में सरकार के हलफनामे का हवाला दिया. इसके बाद पीठ ने मामले की सुनवाई 11 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी.
बिजली का झटका, गोली मारना या गैस चैंबर…
जनहित याचिका, जिसमें फांसी को फांसी के तौर पर खत्म करने की मांग की गई है, इसके बजाय घातक इंजेक्शन, बिजली का झटका, गोली मारना या गैस चैंबर जैसे विकल्पों की सिफारिश की गई है, और तर्क दिया गया है कि इनसे त्वरित और कम दर्दनाक मौत सुनिश्चित होगी.
इससे पहले, मार्च 2023 में, अदालत ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से फांसी के प्रभाव और अवधि तथा वैकल्पिक तरीकों की व्यवहार्यता पर आँकड़े एकत्र करने को कहा था. मई तक, अटॉर्नी जनरल ने अदालत को सूचित किया कि उन्होंने एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की सिफ़ारिश की है जो यह जाँच करेगी कि क्या अधिक मानवीय तरीके अपनाए जा सकते हैं.
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