Sanjauli Mosque Controversy: शिमला के संजौली इलाके में मस्जिद को लेकर शुरू हुआ विवाद पिछले कुछ हफ्तों से लगातार सुर्खियों में है.मामला केवल एक धार्मिक ढांचे तक सीमित नहीं रहा, बल्कि ये स्थानीय समुदाय, प्रशासनिक कार्रवाई, कोर्ट के आदेश और कानून-व्यवस्था की चिंता से जुड़ता चला गया. विरोध-प्रदर्शन, एफआईआर, अनशन और प्रशासन के आश्वासन के बाद अब हालात कुछ शांत हुए हैं, लेकिन विवाद अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. शुक्रवार को हिंदू संगठनों ने अपना आमरण अनशन सरकार के आश्वासन पर खत्म किया, हालांकि क्रमिक अनशन जारी रखने का ऐलान उन्होंने किया है. वहीं 29 नवंबर को गठित कमेटी मस्जिद से जुड़े मुद्दों बिजली-पानी काटने, सील करने और ढांचा गिराने पर निर्णय लेगी.
आइए समझते हैं कि ये पूरा विवाद आखिर है क्या और दोनों पक्षों का क्या कहना है.
विवाद कैसे शुरू हुआ?
संजौली शिमला में ऊपर का एक क्षेत्र है जहां कई दशकों से एक मस्जिद स्थित है. विवाद उस समय अचानक तेज हो गया जब पिछले शुक्रवार को नमाज पढ़ने से रोकने की कोशिश हुई और इसके बाद पुलिस ने 6 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कर दी. इन 6 लोगों में दो महिलाएं भी शामिल थीं, जो हिंदू संगठनों से जुड़े बताए जाते हैं.
स्थानीय महिलाओं ने आरोप लगाया कि मस्जिद का निर्माण अवैध है और कोर्ट ने भी इसे गैर-कानूनी घोषित किया है, ऐसे में यहां किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि नहीं होनी चाहिए. महिलाओं के आपत्ति जताने के बाद मस्जिद परिसर के बाहर तनाव की स्थिति बन गई और पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा. इसके बाद देवभूमि संघर्ष समिति से जुड़े कार्यकर्ताओं ने FIR वापस लेने और अवैध निर्माण पर कार्रवाई की मांग को लेकर संजौली थाने के बाहर अनिश्चितकालीन अनशन शुरू कर दिया.
कोर्ट का निर्णय
विवाद का मेन आधार ये है कि कोर्ट ने मस्जिद को अवैध निर्माण करार दिया है. कोर्ट का ये आदेश मिलने के बाद हिंदू संगठन उस पर बुलडोजर कार्रवाई की मांग उठा रहे हैं. मस्जिद संजौली पुलिस स्टेशन से कुछ ही दूरी पर स्थित है और लंबे समय से इस विवाद का विषय रही है. कोर्ट के निर्णय के बाद प्रशासन को कार्रवाई करनी थी, जबकि हिंदू संगठनों का आरोप है कि प्रशासन “ढील” बरत रहा है. इसी ढिलाई के खिलाफ आंदोलन तेज हुआ.
नमाज को लेकर फिर क्यों भड़का विवाद?
अनशन चल ही रहा था कि कुछ स्थानीय लोगों ने दावा किया कि मस्जिद में नमाज पढ़ने की कोशिश हुई है. इस दावे से माहौल फिर तनावपूर्ण हो गया. हालांकि पुलिस जांच में ये पाया गया कि मस्जिद का मेन गेट बाहर से बंद था. बताया गया कि कुछ लोग बाजू के रास्ते से अंदर गए थे जिसे लेकर विवाद और गहरा गया.
इसी दौरान उपस्थित हिंदू संगठन के सदस्यों ने पुलिस के सामने अपना विरोध जताया और सवाल उठाया कि: जब कोर्ट ने स्ट्रक्चर को गैर-कानूनी बताया है तो वहां धार्मिक गतिविधियां क्यों हो रही हैं? इस घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुए, जिससे विवाद और बढ़ गया.
मस्जिद पक्ष की सफाई
मस्जिद के मौलवी मौलाना शहजाद आलम ने पूरा आरोप खारिज करते हुए कहा कि: कोई भी नमाज पढ़ने नहीं आया था. जो लोग आए थे, उन्हें पास की दूसरी मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए कहा गया. मस्जिद की जमीन स्टेट वक्फ बोर्ड की है. वो यहां सैलरीड कर्मचारी हैं और आदेशानुसार ही काम करते हैं.
मौलाना ने ये भी साफ कहा कि इस विवाद को लेकर वो ज्यादा टिप्पणी नहीं करेंगे क्योंकि मामला प्रशासन और कोर्ट के अधीन है. इस पक्ष का कहना है कि मस्जिद वर्षों से अस्तित्व में है और किसी भी कार्रवाई से पहले प्रशासन और वक्फ बोर्ड को उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए.
हिंदू संगठनों की मांगें क्या हैं?
अनशन पर बैठे संगठनों की प्रमुख मांगें निम्नलिखित हैं:
दर्ज FIR को वापस लिया जाए- हिंदू संगठन कहते हैं कि वे शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे, इसलिए उन पर FIR दर्ज करना गलत है.
मस्जिद के बिजली–पानी के कनेक्शन काटे जाएं- उनका तर्क है कि अवैध घोषित ढांचे को सरकारी सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए.
मस्जिद को तुरंत सील किया जाए- संगठन का कहना है कि जब मामला कोर्ट द्वारा गैर-कानूनी बताया गया है, तो ढांचे को सील करना प्रशासन की जिम्मेदारी है.
अवैध ढांचे पर बुलडोजर चलाया जाए- मेन मांग यही है कि मस्जिद को गिराया जाए.
पूरे मामले में प्रशासन साफ और समयबद्ध कार्रवाई करे- इस संबंध में 29 नवंबर को कमेटी बनाई गई है जो इन मुद्दों पर निर्णय लेगी.
आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कमल गौतम (हिंदू रक्षा मंच के अध्यक्ष) ने कहा कि आमरण अनशन फिलहाल खत्म किया गया है, लेकिन क्रमिक अनशन जारी रहेगा.
आंदोलन के दौरान तनाव और स्वास्थ्य संकट
लंबे अनशन के कारण कई प्रदर्शनकारियों की तबीयत बिगड़ने लगी. प्रदर्शनकारी मदन ठाकुर को लो ब्लड प्रेशर की समस्या के चलते IGMC अस्पताल ले जाना पड़ा. इससे तनाव और बढ़ गया और प्रशासन पर दवाब भी. हालात को देखते हुए प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों से बातचीत की और आश्वासन दिया कि: 29 नवंबर को कमेटी की बैठक होगी, कोर्ट के आदेशों के अनुसार कार्रवाई होगी और प्रदर्शनकारियों की मांगों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा. इसके बाद अनशन समाप्त कर दिया गया.
प्रशासन अलर्ट क्यों हुआ?
संजौली क्षेत्र शिमला के घनी आबादी वाले हिस्सों में से एक है. धार्मिक विवादों को लेकर हिमाचल आमतौर पर शांत क्षेत्र माना जाता है. इसी वजह से प्रशासन नहीं चाहता था कि ये विवाद साम्प्रदायिक रंग ले या शहर का माहौल खराब हो. जब नमाज पढ़ने की बात सामने आई और वीडियो वायरल हुआ, तब प्रशासन और पुलिस तुरंत सतर्क हो गए. पुलिस ने मस्जिद की सुरक्षा बढ़ाई और अलग-अलग गुटों की भीड़ को एक-दूसरे से दूर रखने के उपाय किए.
प्रशासन का कहना था कि- सभी निर्णय अदालत और कानून के अनुरूप होंगे, बिना उचित प्रक्रिया के कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी और किसी भी तरह की उग्र गतिविधि बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
मुस्लिम पक्ष का कहना
वक्फ बोर्ड और स्थानीय मुस्लिम समुदाय का तर्क है कि- ये मस्जिद सालों पुरानी है. विवाद एक भूमि और निर्माण अनुमति का है, धार्मिक गतिविधियों का नहीं,
मस्जिद को जानबूझकर बदनाम किया जा रहा है और नमाज पढ़ने का आरोप राजनीतिक और सामाजिक दबाव बनाने के लिए उछाला गया है. उनका कहना है कि मामला अदालत में है और प्रशासन को अपना काम करने दिया जाना चाहिए.
सभी की निगाहें अब 29 नवंबर को होने वाली बैठक पर हैं. ये बैठक कई मायनों में निर्णायक होगी क्योंकि- क्या मस्जिद को सील किया जाएगा? क्या बिजली-पानी के कनेक्शन काटे जाएंगे? क्या बुलडोजर कार्रवाई शुरू होगी? क्या FIR वापस ली जाएगी और क्या इस विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जा सकेगा? इन सभी सवालों के जवाब इसी बैठक के बाद स्पष्ट होंगे. फिलहाल प्रशासन शांति बनाए रखने पर जोर दे रहा है.