Ramdarash Mishra Death: हिंदी जगत के प्रसिद्ध साहित्यकार रामदरश मिश्र ने 31 अक्टूबर 2025 को दुनिया को अलविदा कह दिया. 101 वर्ष की आयु में उन्होंने कविता, उपन्यास कहानी, आलोचना के साथ कई अन्य विधाओं में भी साहित्य सृजन किया. उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है. Ramdarash Mishra ने एक लंबी काव्य-यात्रा की है. यों तो उनका पहला काव्य-संग्रह ‘पथ के गीत’ 1951 में प्रकाशित हुआ किन्तु उन्होंने कविता लिखनी सन् 1940 के आस-पास ही शुरू कर दी थी. उनकी पहली प्रकाशित कविता है ‘चांद’. यह कविता गोरखपुर से प्रकाशित ‘ सरयू पारीण’ पत्रिका के अंक 6 (जनवरी 1941) में छपी थी. सन् 42 में इन्होंने कवित्त सवैयों में ‘चक्रव्यूह’ नामक एक खंड काव्य भी लिखा. प्रारंभिक लेखन का यह दौर बिना किसी गहरी साहित्यिक समझ-बूझ के स्वतः स्फूर्त भाव से यों ही चलता रहा. साहित्यिक वातावरण से दूर अपने गाँव के परिवेश में कवि अपने गांव-गिरांव की प्रकृति और सामाजिक जीवन के कुछ सत्यों को अपनी कैशोर भावुकता के साथ कच्चे ढंग से व्यक्त करता रहा. बनारस जाने पर आप नई कविता तथा नव लेखन के नए आयामों से परिचित हुए तथा ‘नई कविता’ के पथ अग्रसर हुए. बनारस की साहित्यिक गहमागहमी के उन बीते दिनों को वे आज भी याद करते हैं, जहां शंभुनाथ सिंह, ठाकुर प्रसाद सिंह, नामवर सिंह, बच्चन सिंह, शिवप्रसाद सिंह, त्रिलोचन जैसे कवियों – लेखकों का एक सुपरिचित समवाय था. ‘पथ के गीत’ के बाद आपने कविता में अपना रास्ता बदला, नए भावबोध से आपका रचना – संसार जुड़ता गया . ‘बैरंग बेनाम चिट्टियां’ तथा ‘पक गई है धूप’ में ‘नई कविता’ का तेवर और स्थापत्य था, जिसका निर्वाह वे आज तक कर रहे हैं. विधाओं से आपका कोई पूर्वाग्रह नहीं है . कविता में आपने डेढ़ दर्जन से ज़्यादा कृतियाँ दीं तो ग़ज़लों के भी कई संग्रह आए. कहना चाहिए कि हिंदी ग़ज़ल को आपने कविता की एक महत्त्वपूर्ण शैली जैसी ही गरिमा दी.
गांव-जीवन का काव्य-दृष्टि पर प्रभाव
आधुनिकता के आवेग और नई कविता के उन्मेष के बाद आपकी रचना शैली में युगानुरूप बदलाव भी आया है ‘विचार कविता’ और ‘लंबी कविता’ का आंदोलन चला तो रामदरश जी उसके सहभागी भी रहे तथा अनेक लंबी कविताएँ भी लिखीं. ‘समांतर कहानी’, ‘सचेतन कहानी’ आदि के आंदोलन चले तो उसमें भी शामिल रहे, किंतु आंदोलन तो आते -जाते रहते हैं. आप आंदोलन के बलबूते फूलने फलने वाले लेखक नहीं रहे, अपने बूते अपनी पठनीयता बनाई और व्यापक पाठक – संसार के चहेते लेखक बने. भले ही आप अज्ञेय की सप्तक श्रृंखला के कवि नहीं रहे, किसी संगठन के कवि -विशेष भी नहीं रहे, किंतु आपकी कविताओं की आँच धीरे – धीरे लोगों की चेतना पर पड़ती रही है. रामदरश मिश्र ने सदा प्रगतिशीलता की बांह गही.