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भारत के इस शहर में मौत का मनाया जाता है जश्न, बंटती हैं मिठाइयां, बजते हैं ढोल, लेकिन क्यों?

भारत में एक ऐसा शहर है जहां लोग किसी के मरने पर उदास नहीं होते बल्कि खुश होते हैं. आप सोच रहे होंगे ये क्या है, लेकिन ये एक दम सच है. आइए बताती हूं आपको-

By: sanskritij jaipuria | Last Updated: November 19, 2025 6:07:46 PM IST



सदियों से लोगों के घर में अगर बच्चा पैदा होता है तो लोग खुश होते हैं और उस दिन को दिल खोल के जीते हैं, वहीं अगर किसी की मौत हो जाती है तो लोग उदास हो जाते हैं, रोते हैं क्योंकि उनका कोई खास चला गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा शहर है जहां कुछ उल्टा ही होता है. सुनने में अजीब लग रहा होगा लेकिन सच है तो आइए बताती हूं.
 
राजस्थान में बसे सातिया (Satiyaa) समुदाय की जीवन-दृष्टि बाकी समाज से बिल्कुल अलग दिखाई देती है. आमतौर पर दुनिया में जन्म को खुशी और मृत्यु को दुख के रूप में देखा जाता है, लेकिन सातिया समुदाय इस सोच को उलट देता है. यहां मौत जश्न का कारण होती है और जन्म दुख का अवसर. यह परंपरा जितनी विचित्र लगती है, उतनी ही गहरे विश्वासों से जुड़ी है.

 मृत्यु को मुक्ति मानने की सोच

राजस्थान में रहने वाले इस छोटे समुदाय में करीब दो दर्जन परिवार शामिल हैं. इनके अनुसार मृत्यु किसी अंत का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मा की आजादी का क्षण है. वे मानते हैं कि शरीर एक तरह की कैद है और मौत उस कैद से मुक्ति दिलाती है.

इस विश्वास के कारण जब समुदाय में किसी की मृत्यु होती है, तो पूरा गांव उत्सव जैसा माहौल बना लेता है. लोग साफ कपड़े पहनते हैं, ढोल-नगाड़े बजते हैं, मिठाइयां और सूखे मेवे बांटे जाते हैं. चिता तक जाने का रास्ता भी किसी जुलूस की तरह होता है. नाचते-गाते लोग आत्मा की यात्रा को विदाई देते हैं. ये जश्न तब तक चलता है जब तक चिता की आग ठंडी नहीं हो जाती. इसके बाद सामूहिक भोज भी आयोजित किया जाता है, जिसे एक तरह से अंतिम सम्मान माना जाता है.

 जन्म को दुख से जोड़ने का कारण

जैसे मृत्यु को मुक्ति माना जाता है, वैसे ही जन्म को इस समुदाय में कष्ट की शुरुआत समझा जाता है. उनका विश्वास है कि दुनिया दुखों और बंधनों से भरी है, इसलिए जब कोई बच्चा जन्म लेता है, तो वे सोचते हैं कि आत्मा फिर से इस कठिन जीवन में लौट आई है.

इसी वजह से नवजात के जन्म पर खुशी नहीं मनाई जाती. कई परिवार उस दिन नार्मल खाना नहीं बनाते और माहौल उदास रहता है. कुछ लोग नवजात को बोझ या दुख की शुरुआत के रूप में देखते हैं. ये सोच समाज की पारंपरिक धारणाओं से पूरी तरह अलग दिखाई देती है.

 परंपरा और सोच के बीच छिपा संदेश

सातिया समुदाय की ये अनोखी परंपरा समाज को कई सवालों से सामना कराती है. क्या जीवन सच में हमेशा खुशी का प्रतीक है? क्या मृत्यु केवल दुख का कारण होती है? इस समुदाय का दर्शन बताता है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जीवन और मौत को लेकर बिल्कुल अलग नजरिए मौजूद हैं.

कुछ रिपोर्टों में ये भी कहा गया है कि इस समुदाय में शिक्षा और जागरूकता का स्तर कम है, जिससे उनके कई फैसलों पर बाहरी दुनिया सवाल उठाती है. फिर भी, उनकी यह परंपरा हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि समाज के सामान्य नियम हर जगह समान नहीं होते और जीवन-मृत्यु की व्याख्या भी संस्कृति के हिसाब से बदल सकती है.

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