केंद्र सरकार ने बीते दिन शुक्रवार को देश में 4 नए लेबर कानून लागू किये इसके बाद से भारत की दस प्रमुख ट्रेड यूनियनों ने सरकार द्वारा नए लेबर कोड लागू किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है. दशकों बाद किए गए इस बड़े बदलाव को यूनियनों ने मजदूरों के साथ धोखाधड़ी बताया है. जिसके बाद ट्रेड यूनियनों ने शुक्रवार को ही जारी अपने संयुक्त बयान में मांग की है कि अगले सप्ताह के बुधवार से पहले सरकार इन कानूनों को वापस ले नहीं तो राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.
आपको बता दें कि मोदी सरकार ने पांच साल पहले संसद से पारित चारों लेबर कोड अब लागू कर दिए हैं. सरकार ने इसे लागू करते हुए ये तर्क दिया है कि ये बदलाव पुराने, औपनिवेशिक दौर के नियमों को आसान बनाते हैं और निवेशकों के लिए माहौल को ज्यादा सहज बनाते हैं. सरकार का कहना है कि नए प्रावधानों से श्रमिकों की सुरक्षा और सामाजिक ढांचा मजबूत होगा.
इन बातों को लेकर है नाराजगी
लेकिन यूनियनों की नाराज़गी की वजह अलग है. उनका कहना है कि जहां एक ओर इन कोड में सोशल सिक्योरिटी और न्यूनतम वेतन जैसी सुविधाएं शामिल हैं, वहीं दूसरी ओर कंपनियों को कर्मचारियों की भर्ती और छंटनी में पहले से कहीं अधिक छूट मिल जाएगी यही नहीं नए नियमों में फैक्ट्रियों में लंबी शिफ्टों की अनुमति, महिलाओं के लिए नाइट शिफ्ट की मंज़ूरी मिल जाएगी और बिना पूर्व अनुमति के छंटनी की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 कर्मचारियों तक कर दी गई है. यूनियनों के अनुसार ये बदलाव कंपनियों के लिए तो सुविधाजनक हैं लेकिन मजदूरों की स्थिति कमजोर कर देगी.
श्रम मंत्रालय ने यूनियनों की आपत्तियों पर रॉयटर्स के सवालों का तुरंत जवाब नहीं दिया. मंत्रालय के एक आंतरिक दस्तावेज़ से पता चलता है कि जून 2024 से सरकार यूनियनों के साथ 12 से अधिक दौर की बातचीत कर चुकी है.
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व्यापार जगत लंबे समय से भारत के जटिल श्रम कानूनों को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के विकास में बाधा मानता रहा है. लेकिन एसोसिएशन ऑफ इंडियन एंटरप्रेन्योर्स ने इस आशंका का इज़हार किया कि नए कोड छोटे और मझोले उद्योगों के लिए लागत बढ़ा देंगे और कई अहम क्षेत्रों में कामकाज प्रभावित हो सकते हैं. संगठन ने सरकार से मांग की है कि लागू करने की प्रक्रिया को चरणबद्ध और लचीला रखा जाए तथा ट्रांज़िशन के दौरान मदद दी जाए.
सभी यूनियन इस कानून के खिलाफ नहीं
हालांकि सभी यूनियनें इसके खिलाफ नहीं हैं. भाजपा से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ ने कुछ कोड पर राज्यों के साथ पर्याप्त बातचीत के बाद उन्हें लागू करने की वकालत की है. अब ज़िम्मेदारी राज्यों की है कि वे वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल सुरक्षा से जुड़े इन नए केंद्रीय कोड के अनुरूप अपने-अपने नियम तय करें.

