Nellie Massacre: चार दशक पहले जब पूर्वोत्तर भारत में नेल्ली नरसंहार हुआ था, अखिल असम छात्र संघ (AASU) के नेतृत्व में असम में घुसपैठ विरोधी आंदोलन अपने चरम पर था. 18 फरवरी, 1983 को नेल्ली क्षेत्र के 14 गांवों में कम से कम 2,000 लोग मारे गए थे. जानकारी के अनुसार, इनमें से अधिकतर मुस्लिम प्रवासी थे. मारे गए लोगों में ज्यादातर बच्चे और महिलाएं थीं. नेल्ली नरसंहार में मारे गए लोगों की आधिकारिक संख्या भले ही 2000 थी, लेकिन अनौपचारिक आंकड़ों के अनुसार 3,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.
आखिर अब क्यों रिपोर्ट की जाएगी सार्वजानिक?
इस नरसंहार को लेकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने न्यायमूर्ति त्रिभुवन प्रसाद तिवारी की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन तो किया था, रिपोर्ट सौंपे जाने के बावजूद रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया था. इस बड़ी घटना का राष्ट्रीय राजनीति पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ा. हालांकि, इस घटना को सम के राजनीतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है. असम आंदोलन से जुड़े नेताओं ने इसमें अपनी किसी भी संलिप्तता से साफ इन्कार किया था.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब तब की सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया तो अब इस रिपोर्ट को हिमंता सरकार क्यों सार्वजनिक कर रही है. जाहिर सी बात है, अगले साल असम में विधानसभा चुनाव होने वाला है. इसलिए भाजपा वोटों का धुर्वीकरण करने के लिए इस रिपोर्ट को पेश कर रही है.
In 1985 the Tiwari Commission submitted its findings to the then government on the 1983 Nellie Massacre.
Today the Assam Cabinet has decided to place this report on the floor of the Assam Assembly, so its facts can be made available to the public. pic.twitter.com/MW3rbttV8a
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) October 23, 2025
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असम के मुख्यमंत्री ने क्या कहा?
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि पिछले 40 वर्षों से राज्य में सत्ता में रही सरकार इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का साहस नहीं जुटा पाई. लेकिन यह हमारे इतिहास का हिस्सा है. मुख्यमंत्री का दावा है कि नेल्ली नरसंहार असम के राजनीतिक इतिहास का “सबसे काला अध्याय” है. उनके अनुसार अब तक समाजशास्त्री और इतिहासकार नरसंहार की परिस्थितियों और जांच रिपोर्ट की अपने-अपने तरीके से व्याख्या करते रहे हैं. इसके सार्वजनिक प्रकटीकरण से जनता को सही तथ्य पता चलेंगे.
मुख्यमंत्री ने मीडिया के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि सरकार के पास आयोग के निर्णय की जो प्रति थी, उस पर अध्यक्ष के हस्ताक्षर नहीं थे. हमने उस समय के अधिकारियों से बातचीत और फोरेंसिक जांच के माध्यम से इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि की है.
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