Maharashtra News: देशभर में कई राजनीतिक पार्टी हैं जो चुनाव में अपनी किस्मत अक्सर आजमाती रहती हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी राजनीतिक पार्टी के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका चिन्ह कबूतर है. अब उनका चिन्ह कबूतर कैसे बना ये जनना काफी दिलचस्प होने वाला है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जैन मुनि नीलेशचंद्र विजय ने दादर उपनगर में कबूतरखाना और मुंबई भर में बाकी कबूतर-दाने वाले स्थानों को बंद करने के बीएमसी के फैसले के खिलाफ हथियार उठाने की धमकी दी थी. लेकिन, बाद में उन्होंने कहा कि उनका इरादा शांतिपूर्ण तरीके से काम करने का है. जिसके चलते अब, जैन समुदाय ने कबूतर को अपना प्रतीक चिन्ह बनाकर अपनी राजनीतिक पार्टी, “शांतिदूत जनकल्याण पार्टी” की घोषणा की है. लंबे समय से लंबित बीएमसी चुनावों से पहले उठाए गए इस कदम ने मुंबई के राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है.
जैनियों की बनी पहली पार्टी
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बीएमसी भारत का सबसे धनी नगर निकाय है. वहीं 2017 के बाद से वहां कोई चुनाव नहीं हुए हैं. जैसा की आप सभी जानते हैं कि मुंबई में जैन समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है. यह नई पार्टी कई वार्डों में वोटों को प्रभावित कर सकती है, या कम से कम उन्हें बांट सकती है. बीएमसी वर्तमान में किसी भी निर्वाचित राजनीतिक दल के नियंत्रण में नहीं है और इसका संचालन राज्य द्वारा नियुक्त प्रशासकों द्वारा किया जाता है. गौरतलब है कि जैन भारत की आबादी का केवल 0.4% हिस्सा हैं. वे अपनी अहिंसा और सभी जीवों के प्रति करुणा के लिए जाने जाते हैं.
जानिये क्यों बनाया कबूतर को चिन्ह
जब जुलाई में बीएमसी ने कबूतरों को दाना डालने पर प्रतिबंध की घोषणा की, तो समुदाय के लोग सड़कों पर उतर आए और विरोध जताया. दादर का कबूतरखाना, जहाँ जैन समुदाय रोज़ाना हज़ारों कबूतरों को दाना डालता था, पक्षियों को बैठने से रोकने के लिए स्लेटी रंग के तिरपाल से ढक दिया गया था. इसके बावजूद, समुदाय के सदस्य उस जगह के आसपास कबूतरों को दाना डालते रहे. कबूतर स्वभाव से मज़बूत पक्षी माने जाते हैं और आस-पास की छतों पर चले जाते हैं. उनकी बीट से त्वचा रोग फैलने का खतरा रहता है. उनके घरों, कारों और सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा फैलाने की शिकायतें सामने आने लगीं.