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Hindi Diwas 2025: जानिए मुंशी प्रेमचंद की 3 ऐसी कालजयी रचनाएं जो ला सकती है समाज में क्रांति

Hindi Diwas 2025: हिंदी दिवस के अवसर पर आपको बताएँगे उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 3 ऐसी कालजयी रचनाएं (उपन्यास) जो समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों पर कथा के माध्यम से कड़ा प्रहार करती है.

By: Swarnim Suprakash | Published: September 13, 2025 7:09:42 PM IST



Hindi Diwas 2025: देश में राष्ट्रीय हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है।भारत में हिंदी भाषा को साल 1949 में संविधान सभा ने भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकृति दी थी. इस खास दिन को मनाने को उत्सव क्र रूप में मानाने का उद्देश्य हिन्दी भाषा के महत्व और प्रसार को बढ़ावा देना है. यह ख़ास दिन हिन्दी साहित्य, संस्कृति और इतिहास को प्रोत्साहित करते हुए लोगों को हिन्दी भाषा के प्रति अधिक जागरूक करता है और भाषा के प्रति प्रोत्साहित करता है. ऐसे में इस खास दिन को हिंदी भाषी बहुल स्थानों पर खूब उत्साह के साथ मनाया जाता है. 

उपन्यास सम्राट और उनकी कालजयी रचनाएं 

हिंदी दिवस के अवसर पर आपको बताएँगे उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 3 ऐसी कालजयी रचनाएं (उपन्यास) जो समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों पर कथा के माध्यम से कड़ा प्रहार करती है. मुंशी प्रेमचाँद की रचनाएं मौजूदा समय में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी तब के समय थी. कई साहित्यिक विशेषज्ञों का मानना है की मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों के खिलाफ एक बड़ा हथियार साबित हुईं. 

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मुंशी प्रेमचंद्र की 3 ऐसी रचनाएं जो सामाजिक क्रांति ला सकती है 

1. निर्मला  (1927)

निर्मला एक उपन्यास है. जो मुंशी प्रेमचंद द्वारा 1927 में लिखा गया था, यह उपन्यास दहेज प्रथा और अनमेल विवाह की समस्या पर केंद्रित है और इस कुरीति पर कड़ा प्रहार करती है. इस उपन्यास की मुख्य नायिका निर्मला एक 15 वर्षीय सुंदर और सुशील लड़की है, जिसका विवाह सामाजिक कारणों से 40 वर्षीय मुंशी तोताराम से होता है. यह विवाह निर्मला के जीवन को अत्यंत दुखद, संघर्षमय और करुण बना देता है. उपन्यास में मुंशी प्रेमचंद ने स्त्री जीवन की त्रासदी और मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय स्थिति का अपनी लेखन शक्ति से मार्मिक चित्रण किया है. निर्मला की मृत्यु इस कुत्सित सामाजिक प्रथा के खिलाफ एक भारी चुनौती के रूप में प्रस्तुत की गई है. यह उपन्यास आज के समय में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना की तब हुआ करता था. 

2.  रंगभूमि (1925)

रंगभूमि मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध हिंदी उपन्यास है जो 1925 में प्रकाशित हुआ था. इस उपन्यास में प्रेमचंद ने समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है, जैसे कि अछूत समस्या, सामाजिक असमानता, और एक विशेष वर्ग में राजनीतिक चेतना की कमी. 
इस उपन्यास में दलित वर्ग की समस्याओं और समाज में उनके साथ होने वाले भेदभाव को दर्शाया गया है. प्रेमचंद ने समाज में व्याप्त असमानता और जाति व्यवस्था की इस उपन्यास के द्वारा कड़ी आलोचना की है. इस उपन्यास में राजनीतिक जागरूकता और सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है. रंगभूमि मुंशी प्रेमचंद की महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है और इसमें उन्होंने समाज और जातीय व्यवस्था के विभिन्न मुद्दों पर अपनी चिंता व्यक्त की है. 

3. गोदान (1936)

गोदान मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध हिंदी उपन्यास है जो भारतीय किसानों की जीवन यात्रा, दयनीय स्थिति और कठिन संघर्षों को दर्शाता है. उपन्यास की कहानी उत्तर भारत के एक काल्पनिक गाँव ‘बेलारी’ में रहने वाले किसान ‘होरी महतो’ के आस-पास घूमती है, जो अपने परिवार के लिए संघर्ष करता है और अपनी अंतिम इच्छा के र्रोप में  “गोदान” करने की कोशिश करता है, जो हिंदू धर्म में एक पवित्र और पुण्यदायी कार्य माना जाता है.

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