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Gyanvapi dispute: मुसलमान सौंप दें ज्ञानवापी! केके मुहम्मद ने हिन्दुओं से भी की ये ख़ास अपील

एएसआई के पूर्व अधिकारी के के मोहम्मद ने बड़ा बयान देकर हलचल मचा दी है. उन्होंने कहा है कि मुसलमानों को स्वेच्छा से ज्ञानवापी हिंदुओं को सौंप देना चाहिए. आखिर क्या है इस अपील के पीछे की वजह? पढ़ें पूरी रिपोर्ट…

Published by Shivani Singh

ज्ञानवापी विवाद एक बार फिर देशभर की सियासत और धर्म-संवेदनाओं को झकझोर रहा है. एएसआई के पूर्व रीजनल डायरेक्टर के के मुहम्मद ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि मुसलमानों को स्वेच्छा से ज्ञानवापी हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए. उनके इस बयान ने मुस्लिम समुदाय ही नहीं बल्कि पूरी राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है. उन्होंने आगे क्या कहा? और क्यों उनका यह बयान इतना अहम माना जा रहा है? आइए जानते हैं इस पूरी रिपोर्ट में…

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के पूर्व रीजनल डायरेक्टर केके मुहम्मद ने मंदिर-मस्जिद विवाद में संयम बरतने की अपील की है. उन्होंने कहा कि अब चर्चा का फोकस सिर्फ़ तीन जगहों पर होना चाहिए: राम जन्मभूमि, मथुरा और ज्ञानवापी.

उन्होंने सुझाव दिया कि मुसलमानों को अपनी मर्ज़ी से ये जगहें सौंप देनी चाहिए. केके मुहम्मद ने हिंदुओं से नए दावे न करने की अपील की. ​​उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि बढ़ते दावों से सिर्फ़ और ज़्यादा दिक्कतें पैदा होंगी. केके मुहम्मद की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब देश भर की अदालतों में मंदिर-मस्जिद विवाद से जुड़ी कई याचिकाएँ पेंडिंग हैं.

इंडिया टुडे से बात करते हुए, मुहम्मद ने कहा कि राम जन्मभूमि के अलावा, मथुरा और ज्ञानवापी दो और जगहें हैं जो “हिंदू समुदाय के लिए उतनी ही ज़रूरी हैं जितनी मक्का और मदीना मुसलमानों के लिए हैं.”

‘अयोध्या विवाद लेफ्ट-विंग प्रोपेगैंडा की वजह से पैदा हुआ’

अयोध्या विवाद पर बोलते हुए, केके मुहम्मद ने 1976 में बीबी लाल के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद की खुदाई में अपने शामिल होने को याद किया. उन्होंने कहा कि एक कम्युनिस्ट इतिहासकार के असर की वजह से यह विवाद बढ़ा. उनके मुताबिक, कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने मुस्लिम समुदाय को मस्जिद के नीचे मंदिर होने के सबूत को खारिज करने के लिए मनाया. मुहम्मद के मुताबिक, ज़्यादातर मुसलमान शुरू में विवादित जगह पर मंदिर बनाने की इजाज़त देकर इस मुद्दे को सुलझाने के पक्ष में थे.

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मुहम्मद ने कहा कि इतिहासकार कोई आर्कियोलॉजिस्ट नहीं था और खुदाई के किसी भी स्टेज पर उस जगह पर नहीं गया था. उन्होंने झूठ फैलाने की आलोचना की और उस समय लोगों की राय पर असर डालने वालों के बीच सीधी जानकारी की कमी की ओर इशारा किया.

उन्होंने इंडिया टुडे/आज तक को बताया, “उस अहम समय में, एक कम्युनिस्ट इतिहासकार ने इस सब में दखल दिया और फिर मुस्लिम समुदाय को यकीन दिलाया कि प्रोफेसर लाल ने उस जगह की खुदाई की थी और उन्हें मंदिर होने का कोई सबूत नहीं मिला. इसलिए, यह उनकी अपनी मनगढ़ंत कहानी थी. इसलिए, मुसलमानों के पास कोई और रास्ता नहीं था.” उन्होंने आगे कहा, “वे कभी भी उस जगह पर नहीं गए थे, न तो खुदाई से पहले, न ही खुदाई के दौरान, और न ही खुदाई के बाद. इसलिए, बिना सब्जेक्ट जाने, वे ऐसी झूठी कहानियाँ फैला रहे थे. इसलिए, किसी को तो जवाब देना ही था। इसलिए, पहली बार, टीम को लीड करने वाले प्रोफेसर बीबी लाल ने करारा जवाब दिया.” उन्होंने ऐसे दावों को कट्टर हिंदू ग्रुप्स की हर चीज़ को अपना बताने की एक और कोशिश बताया.

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