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Gwalior News: भारत का 79वां स्वतंत्रता दिवस, लेकिन वही पुराना जातिगत भेदभाव, सरकारी विभाग में करते हैं चटाई बिछाकर काम

Gwalior News: भारत को स्वतंत्र हुए 78 साल हो चुके हैं और भारत अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। लेकिन देश में आज भी जातिगत भेदभाव खत्म नहीं हुआ है। ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर से सामने आया है।

By: Srishti Sharma | Published: August 14, 2025 8:24:35 PM IST



संतोष सिंह की रिपोर्ट, Gwalior News: भारत को स्वतंत्र हुए 78 साल हो चुके हैं और भारत अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। लेकिन देश में आज भी जातिगत भेदभाव खत्म नहीं हुआ है। ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर से सामने आया है। जहां एक सरकारी दलित अफसर अपने ही ऑफिस में जमीन पर चटाई बिछाकर काम करने को मजबूर है।

आज भी जारी है, जातिगत भेदभाव

भारत देश अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। ऐसे में उच- नीच और जातिगत भेदभाव की बात की जाए.. तो बात पुरानी लगती है और अंग्रेजों का समय याद आता है लेकिन मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर स्थित भवन विकास निगम मध्यप्रदेश के सरकारी दफ्तर में जातिगत भेदभाव आज भी जारी है। दरअसल, तस्वीरों में आप ज़मीन पर चटाई बिछाकर काम करते हुए जिस व्यक्ति को देख रहे हैं, वह इस विभाग में सहायक महा प्रबंधक सतीश डोंगरे है। जो बीते एक साल से अपने ऑफिस में इसी तरह जमीन पर चटाई बिछाकर बैठते हैं और विभागीय काम करते चले आ रहे हैं।

अपने विभाग पर जातिगत भेदभाव का आरोप

MP भवन विकास निगम का यह ऑफिस किराए के भवन में चल रहा है, जहां अन्य अधिकारियों को बैठने के लिए उन्हें चैंबर और टेबल कुर्सी दी गई हैं। सतीश डोंगरे एक साल से बैठने के लिए कुर्सी टेबल मांग रहे हैं, लेकिन, उनका विभाग अपने एक अधिकारी को कुर्सी टेबल तक नहीं दे पा रहा है। जबकि, उनके जूनियर टेबल कुर्सी के साथ अपने चैंबरों में बैठकर काम कर रहे हैं। ऐसे में दलित सरकारी कर्मचारी सतीश डोंगरे ने अपने विभाग पर जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया है।

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वरिष्ठ अधिकारी का जवाब

मध्यप्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी अतिरिक्त महाप्रबंधक अच्छेलाल अहिरवार जवाब दिया, कि भोपाल मुख्यालय डिमांड भेजी गई है। जब फंड आएगा तब कुर्सी टेबल की व्यवस्था की जाएगी।

क्या आज भी जातिगत भेदभाव होते हैं?

बहरहाल आज़द भारत की यह तस्वीर यह सोचने पर मजबूर करती है, कि क्या आज भी जातिगत भेदभाव होते हैं, वो भी एक सरकारी दफ्तर में, जहां एक साल बाद भी एक अधिकारी को टेबल, कुर्सी भी नसीब नहीं हो पा रही है।

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