पुणे के जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. किशोर एम. पाकनिकर को बड़ी उपलब्धि मिली है. जो लोग नहीं जानते, वह अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (ARI) के पूर्व डायरेक्टर रह चुके हैं और IIT बॉम्बे में डिस्टिंग्विश्ड विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं. उन्हें भारत सरकार के अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) ने एक नई पहल, प्रधानमंत्री प्रोफेसरशिप, के लिए चुना है. वह इस सम्मान को पाने वाले पहले लोगों में से एक हैं.
डॉ. पाकनिकर को अगले पांच सालों के लिए पुणे की COEP टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में नियुक्त किया गया है.
क्या है प्रधानमंत्री प्रोफेसरशिप?
यह प्रोफेसरशिप दरअसल एक नई राष्ट्रीय पहल है जिसका मुख्य मकसद भारत के रिसर्च इकोसिस्टम को मजबूत बनाना है. इसके तहत, बहुत अनुभवी वैज्ञानिकों को उन विश्वविद्यालयों में भेजा जाएगा जिनकी पढ़ाई-लिखाई की नींव तो मजबूत है, लेकिन उन्हें रिसर्च के मामले में लगातार मार्गदर्शन की ज़रूरत है।
मिलने वाले फ़ायदे:
- फ़ेलोशिप: पाँच साल तक हर महीने 2,50,000 रुपये
- रिसर्च ग्रांट: हर साल 24,00,000 रुपये
- ओवरहेड: हर साल 1,00,000 रुपये
यह बाकी फेलोशिप से थोड़ी अलग है. जहाँ पारंपरिक फेलोशिप सिर्फ व्यक्तिगत रिसर्च पर फोकस करती है, वहीं पीएम प्रोफेसरशिप भारतीय मूल के अनुभवी, भले ही सेवानिवृत्त लेकिन रिसर्च में सक्रिय वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों और उद्योग जगत के पेशेवरों को सीधे उन विश्वविद्यालयों में नियुक्त करती है जहाँ रिसर्च इकोसिस्टम थोड़ा कमजोर है.
इन प्रोफसरों को मेजबान संस्थान में पूरे समय के लिए रहना होगा और कम से कम पाँच साल तक काम करने की प्रतिबद्धता दिखानी होगी. डॉ. पाकनिकर उन 21 प्रोफेसरों में से हैं जिन्हें इस पहल के तहत पूरे देश में चुना गया है.
डॉ. पाकनिकर का रिसर्च में योगदान
डॉ. पाकनिकर माइक्रोबायोलॉजी और नैनोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपने काम के लिए बहुत जाने जाते हैं. उन्होंने खासकर पर्यावरण जैव प्रौद्योगिकी, नैनोमटेरियल्स और ट्रांसलेशनल रिसर्च पर जोर दिया है. अपने शानदार करियर के दौरान, उन्होंने हमेशा बुनियादी विज्ञान को तकनीक विकास के साथ जोड़ा है. इसके अलावा, उन्होंने युवा वैज्ञानिकों को सलाह देने और नए रिसर्च ग्रुप बनाने में भी अहम भूमिका निभाई है.
उनकी नई भूमिका COEP में क्या होगी?
अपने चयन पर डॉ. पाकनिकर ने कहा कि वह इसे शैक्षणिक व्यवस्था को वापस कुछ देने की ज़िम्मेदारी मानते हैं. उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि यह प्रोफेसरशिप सीनियर वैज्ञानिकों के अनुभव को उन विश्वविद्यालयों को मजबूत करने का बेहतरीन मौका देती है, जो भले ही बड़ी संख्या में छात्रों को पढ़ाते हैं, लेकिन अक्सर मजबूत रिसर्च माहौल की कमी महसूस करते हैं. उनके हिसाब से, ऐसे संस्थानों में अनुभवी शोधकर्ताओं के आने से रिसर्च के तरीके और उसके महत्व को लेकर एक स्थायी सांस्कृतिक बदलाव आ सकता है.
COEP टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में, डॉ. पाकनिकर का मुख्य ध्यान फैकल्टी सदस्यों, डॉक्टरेट स्कॉलर्स और शुरुआती करियर के शोधकर्ताओं को गाइड करने पर रहेगा.
उनका काम इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च पर और राष्ट्रीय ज़रूरतों से जुड़े समाधानों पर केंद्रित होगा, जैसे कि वॉटर टेक्नोलॉजी, पर्यावरण स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी), एडवांस्ड मटीरियल्स और इंडस्ट्री से जुड़ा इनोवेशन. सहयोगी प्रोजेक्ट तैयार करना, लैब के कल्चर को मजबूत करना, और समस्या-आधारित रिसर्च को बढ़ावा देना उनकी भूमिका का सबसे अहम हिस्सा होगा.
उम्मीद है कि प्राइम मिनिस्टर प्रोफेसरशिप भारत में उच्च शिक्षा रिसर्च के क्षेत्र में जो असमानता है, उसे कम करने में मदद करेगी. इससे बेहतरीन काम सिर्फ कुछ चुनिंदा संस्थानों तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उच्च-गुणवत्ता वाली रिसर्च ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक आसानी से पहुँच पाएगी.