Dharali: उत्तराखंड की धराली में विनाशकारी जलप्रलय: 300 करोड़ से अधिक का नुकसान और भारी तबाही
उत्तराखंड के मुखबा और धराली गांव में हाल ही में आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने लाखों लोगों की जिंदगी को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। दो दिन पहले अचानक आई तेज बाढ़ और मलबा बहाव से धराली गांव का लगभग 70 से 90 प्रतिशत हिस्सा तबाह हो गया। इस विनाशकारी जलप्रलय ने न केवल हजारों लोगों के घरों को जमींदोज किया, बल्कि कई अनमोल जानें भी ले लीं।
मौके पर मौजूद महिलाएं मुखबा गांव के किनारे रेलिंग पर बैठकर धराली की तबाही का मंजर देख रही थीं। उनके उदास चेहरे इस त्रासदी की गहराई को बयां कर रहे थे। इन महिलाओं ने बताया कि उन्होंने उस आपदा को आंखों के सामने होते देखा, जब मलबा तेजी से ढलानों से नीचे आता चला गया और सब कुछ तहस-नहस कर दिया।
आपदा के दौरान हुई घबराहट और मदद के लिए पुकार
आशा सेमवाल और निशा सेमवाल जैसी स्थानीय महिलाओं ने बताया कि जब सैलाब आया तो लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे, लेकिन वे कुछ कर नहीं पाए। कुछ सेकंड में ही मलबा और पानी ने पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लिया। आसपास के कई पर्यटक, मजदूर और स्थानीय लोग उस समय धराली बाजार और निर्माणाधीन होटलों में मौजूद थे, जो इस आपदा के शिकार हुए।
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500 साल पुराने कल्प केदार मंदिर का भी विनाश
इस विनाश से प्रभावित मुखबा गांव के एक पुजारी ने बताया कि यह बाढ़ सामान्य नहीं बल्कि एक जलप्रलय थी, जिसने कई बड़े होटल और पुरानी इमारतों को जमींदोज कर दिया। 500 साल पुराने प्रसिद्ध कल्प केदार मंदिर को भी मलबे ने दबा दिया, जिससे सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को भी भारी नुकसान हुआ है।
आर्थिक नुकसान और राहत की अपील
धराली में हुए इस विनाशकारी हादसे का अनुमानित आर्थिक नुकसान 300 से 400 करोड़ रुपये के बीच बताया जा रहा है। गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश सेमवाल ने कहा कि लापता लोगों की संख्या 50 से 150 तक हो सकती है, जिससे राहत और बचाव कार्यों में तेजी लाई जा रही है। प्रभावित लोगों को तत्काल सहायता और पुनर्वास की आवश्यकता है।
उत्तराखंड के इस आपदा प्रभावित क्षेत्र में समय रहते सतर्कता और प्रभावी राहत कार्य अत्यंत आवश्यक हैं। स्थानीय लोगों की मदद करना और प्रभावित परिवारों को पुनः सुरक्षित जीवन प्रदान करना प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही, सरकार को चाहिए कि वे ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर तैयारी और अवसंरचना का विकास करें ताकि भविष्य में इस तरह की त्रासदियों से बचा जा सके।