Dabur Chyawanprash: आजकल सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसर्स अक्सर खाने-पीने की चीजों की समीक्षा करते हैं. हाल ही में एक इन्फ्लुएंसर जो फूड फार्मर के नाम से सोशल मीडिया पर वीडियो बनाते हैं ने डाबर के नए पैक वाले च्यवनप्राश पर वीडियो बनाई. वीडियो में दावा किया गया कि च्यवनप्राश दिल्ली जैसी शहरों में हवा की समस्या, यानी एयर पॉल्यूशन, को हल कर देता है.
डाबर दिल्ली मेट्रो में भी विज्ञापन चला रहा है कि उनका च्यवनप्राश हमारे फेफड़ों को प्रदूषण से बचाता है, खासकर पीएम 2.5 पार्टिकल्स से. वीडियो में दिखाया गया कि जैसे ही च्यवनप्राश को एयर क्वालिटी मीटर के पास रखा गया, तो AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) कम हो गया और जैसे ही दूर ले जाया गया, AQI बढ़ गया. इसके बाद इन्फ्लुएंसर ने तंज कसते हुए कहा कि हमें हर जगह च्यवनप्राश का इस्तेमाल करना चाहिए खाने में, मसाज में, एयर प्यूरीफायर में ताकि हम प्रदूषण से बच सकें.
अध्ययन की असलियत
लेकिन यहां दो बड़ी समस्याएं हैं जो रिसर्च की सच्चाई सामने लाती है:
1. ये अध्ययन चूहों पर किया गया था. इंसानों और चूहों के फेफड़ों में काफी अंतर होता है.
2. ये अध्ययन पेड था और इसमें काम करने वाले लोग डाबर के कर्मचारी थे.
इसका मतलब है कि ये दावा वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता.
चीनी का मुद्दा
असली सचाई ये है कि डाबर के च्यवनप्राश में लगभग 59.9% चीनी होती है, लेकिन पैक पर इसे सीधे “चीनी” नहीं लिखा जाता, बल्कि “शर्करा” के नाम से लिखा जाता है. कई लोग, खासकर हमारे माता-पिता और दादा-दादी, इसे हेल्दी समझकर खाते हैं.
अब आप ही सोचिए जिस चीज में इतनी ज्यादा चीनी है वो हेल्दी कैसे हो सकता है.