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क्या होता है Pets Rent? बेंगलुरु में मकान मालिक क्यों कर रहे इसकी मांग, जानें वजह!

बेंगलुरु में कई मकान मालिक पालतू जानवर रखने पर हर महीने ज्यादा रुपये तक का अतिरिक्त “पेट्स रेंट” वसूल रहे हैं. साथ ही पेट्स डिपॉजिट, कॉमन एरिया पाबंदियां और कुछ नस्लों पर रोक जैसी शर्तें भी बढ़ गई हैं.

By: sanskritij jaipuria | Last Updated: November 26, 2025 1:21:12 PM IST



बेंगलुरु को काम, नाइटलाइफ और टेक्नोलॉजी के साथ–साथ पालतू जानवरों के प्रति अपने प्यार के लिए भी जाना जाता है. यहां कैफे में पेट्स के लिए अलग मेन्यू मिलना, गलियों में लैब्राडोर और बीगल का घूमना, या पेट्स की बर्थडे पार्टी सब आम बातें हैं. लेकिन अब यही प्यार जेब पर भारी पड़ने लगा है. शहर में एक नया चलन शुरू हुआ है जिसे लोग पेट्स रेंट कह रहे हैं.

अगर आप बेंगलुरु में किराये के घर में रहते हैं और आपके पास पालतू जानवर है, तो अब हर महीने 1000 से 2000 रुपये तक का ज्यादा किराया देना पड़ सकता है. कई मकान मालिक किराये के समझौते में एक नया नियम जोड़ रहे हैं, जिसके तहत ये ज्यादा रकम ली जाती है, यानी पालतू जानवर रखना अब हर महीने आपकी आमदनी पर थोड़ा और बोझ डाल सकता है.

 मकान मालिक ये अतिरिक्त रकम क्यों मांग रहे हैं?

ये नियम अचानक लागू नहीं हुआ. शुरुआत कोरमंगला और एचएसआर लेआउट जैसे इलाकों से हुई, जहां कुछ मकान मालिकों ने ये दलील दी कि पालतू जानवरों के कारण घर को ज्यादा नुकसान होता है. जैसे की फर्श पर दाग,
दीवारों या दरवाजों पर खरोंच और घर में फर और गंध की वजह से डीप क्लीनिंग का खर्च.

धीरे–धीरे ये प्रचलन इंडिरानगर, बेलंदूर और व्हाइटफील्ड तक फैल गया. अब तो कई ब्रोकर बातचीत की शुरुआत ही इस सवाल से करते हैं “क्या आपके पास पेट है?” अगर जवाब हां हो, तो वे तुरंत बताते हैं कि 1500–2000 रुपये एक्स्ट्रा लगेंगे. किरायेदारों का कहना है कि ऐसा नियम सभी पर लागू कर दिया जाता है, जबकि हर पालतू जानवर नुकसान नहीं करता. लेकिन मकान मालिक अक्सर इस बात पर ध्यान नहीं देते.

 पेट्स पेरेंट्स के सामने बढ़ती शर्तें

ज्यादा किराये के अलावा, कई और नई शर्तें भी सामने आ रही हैं, जिनसे पालतू जानवर पालना और मुश्किल हो गया है.

 1. नॉन-रिफंडेबल पेट्स डिपॉजिट- सामान्य सिक्योरिटी डिपॉजिट के अलावा एक और “पेट्स डिपॉजिट” लिया जाता है, जो वापस नहीं मिलता.

 2. पेंटिंग का एडवांस चार्ज- कुछ मकान मालिक घर की पेंटिंग का खर्च पहले ही किरायेदार से वसूल लेते हैं.

 3. लिफ्ट और कॉमन एरिया में पाबंदियां- कई जगहों पर कहा जाता है कि लिफ्ट में पालतू जानवरों को गोद में उठाकर चलें या उन्हें कॉमन एरिया में बिल्कुल न ले जाएं.

 4. कुछ नस्लों पर रोक- कुछ मकान मालिक खास नस्लों के कुत्तों को बिल्कुल नहीं रखने देते.

 5. शोर करने पर जुर्माना- अगर पालतू जानवर ज्यादा आवाज करते हैं और पड़ोसी शिकायत करें, तो अलग से जुर्माना देना पड़ सकता है.

 कानून इस बारे में क्या कहता है?

कानून साफ कहता है कि किसी भी नागरिक को पालतू जानवर रखने से रोका नहीं जा सकता. हाउसिंग सोसायटी भी किसी नस्ल या आकार के आधार पर पालतू जानवर पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती.

लेकिन समस्या यहां आती है निजी मकान मालिकों के नियम, क्योंकि वे अपने रेंटल एग्रीमेंट में अपनी शर्तें जोड़ने का पूरा अधिकार रखते हैं. किरायेदार जब इन शर्तों पर दस्तखत कर देता है, तो उन्हें मानना कानूनी रूप से जरूरी हो जाता है.

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