Aravalli Mountain News: पिछले कई दिनों से आपने सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर अरावली पहाड़ी की कई रील देखी होगी. जिसको लेकर राजस्थान में नई बहस छिड़ गई है. ऐसे में आइए जानते हैं. आखिर ये पूरा मामला क्या है? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अरावली का फैलाव गुजरात, राजस्थान और हरियाणा होते हुए दिल्ली तक है. इसकी लंबाई करीब 800 किलोमीटर है. हरियाणा और राजस्थान में बड़ी मात्रा में अरावली क्षेत्र राजस्व भूमि के रूप में दर्ज है. पहले इन्हें ‘जंगल जैसा क्षेत्र’ मानकर संरक्षण मिलता था अब राज्य सरकारें तय करेंगी कि ये वन हैं या नहीं. इसी को लेकर लोगों का प्रदर्शन जारी है. अब सवाल उठता है कि आखिर इससे दिल्ली और दिल्ली में रहने वाले लोगों पर क्या असर पड़ेगा?
अरावली NCR के लिए डस्ट बैरियर के रूप में काम करती है. अगर अरावली क्षेत्र में खनन/कटाई बढ़ी तो PM10 और PM2.5 में तेज बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. दिल्ली-NCR में पहले से खराब AQI और ज्यादा खराब होगा. इसको लेकर पहले किए गए अध्ययन बताते हैं कि अरावली के नंगे हिस्सों से उड़ने वाली धूल NCR की सर्दियों की स्मॉग में बड़ा योगदान देती है.
दिल्ली को क्या नुकसान होगा? (What damage will Delhi suffer?)
राजस्थान की पहचान और दिल्ली और हरियाणा की पर्यावरणीय रीढ़ मानी जाने वाली अरावली पहाड़ियां अब खत्म होने की कगार पर हैं. अरावली पर्वत, जिसने मैदानी इलाकों को रेगिस्तान बनने से रोका था, अब अपना अस्तित्व खोने वाला है. आइए समझते हैं कि अरावली पहाड़ियों के गायब होने का दिल्ली और हरियाणा पर क्या असर पड़ेगा? विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का मानना है कि अरावली रेंज को हटाने का असर देश की राजधानी दिल्ली पर भी पड़ेगा. दिल्ली में प्रदूषण और गर्मी बढ़ेगी और मॉनसून की बारिश पर भी असर पड़ेगा. अरावली पहाड़ों के हटने से राजस्थान से धूल सीधे दिल्ली पहुंचेगी, जिससे हवा में प्रदूषण का स्तर और बढ़ जाएगा. इससे बीमारियाँ बढ़ेंगी. गर्मियों के महीनों में तापमान तेज़ी से बढ़ेगा.
‘हम कुत्ते हैं क्या?’ स्पाइसजेट के खराब लंच पैकेज पर पुणे एयरपोर्ट पर फूटा यात्रियों का गुस्सा
सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया? (What decision did the Supreme Court make?)
सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर, 2025 को तमिलनाडु के टी.एन. गोवर्धन द्वारा दायर एक पुरानी याचिका पर फैसला सुनाया, जिसका सीधा असर अरावली पहाड़ियों पर पड़ा है. SC के फैसले के अनुसार, अरावली पहाड़ियों की एक नई परिभाषा को मंजूरी दी गई है. इस नई परिभाषा के तहत, जमीन से 100 मीटर या उससे ज़्यादा ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली रेंज का हिस्सा माना जाएगा. इसका मतलब है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली 90% से ज्यादा अरावली पहाड़ियों को अब कानूनी सुरक्षा के दायरे से बाहर माना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से देश भर के पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है. इस पूरे मामले पर पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अरावली पहाड़ों को हटा दिया गया, तो इसका सीधा असर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के पर्यावरण, जीवन, जल संसाधनों, मौसम और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, जो विनाशकारी साबित हो सकता है.
राजस्थान पर क्या असर पड़ेगा? (What impact will this have on Rajasthan?)
अरावली पहाड़ों को हटाने से रेगिस्तान का विस्तार होगा, क्योंकि अरावली रेंज एक प्राकृतिक बाधा का काम करती है. पहाड़ियों को हटाने से रेगिस्तान रिहायशी इलाकों में फैल जाएगा. इसका सीधा असर जयपुर, अलवर, सीकर और दौसा जैसे इलाकों पर पड़ेगा. अरावली रेंज को हटाने से भूजल स्तर और नीचे चला जाएगा, जिससे पानी का संकट और बढ़ जाएगा. किसानों को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ेगा क्योंकि इसका सीधा असर खेती पर पड़ेगा और फसलों की पैदावार कम हो जाएगी.
हरियाणा पर क्या असर पड़ेगा? (What impact will this have on Haryana?)
अरावली पहाड़ों को हटाने से हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्य में खेती और जल संसाधनों पर खतरा बढ़ सकता है. इसका सीधा असर हरियाणा के चार जिलों: गुरुग्राम, नूंह, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ पर पड़ेगा, क्योंकि ये जिले अरावली क्षेत्र में आते हैं. अरावली रेंज को हटाने से रेतीली हवाएँ चलेंगी, मिट्टी की नमी खत्म हो जाएगी और कृषि उत्पादकता में गिरावट आएगी. भूजल स्तर नीचे चला जाएगा, जिससे ट्यूबवेल सूख जाएँगे. न सिर्फ़ तापमान बढ़ेगा, बल्कि हीटवेव भी ज़्यादा आम हो जाएंगी.