Mahatma Gandhi History: भारत को जब आजादी मिली तब पूरा उपमहाद्वीप विभाजन के गहरे संकट से जूझ रहा था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत की आजादी में अहम किरदार निभाने वाले महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू, कहां था? दरअसल, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल ने महात्मा गांधी को एक पत्र लिखकर उन्हें स्वतंत्रता दिवस पर आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया. जवाब में, गांधीजी ने सवाल किया कि जब देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क रहे थे, तो वो स्वतंत्रता दिवस समारोह में कैसे भाग ले सकते थे.
आजादी के दिन खुश नहीं थे गांधी जी
दरअसल, 14-15 अगस्त, 1947 की रात को जब जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत में पहला भाषण दे रहे थे, तब कम ही लोग जानते होंगे कि महात्मा गांधी ने उस समय किसी भी समारोह में पहुंचने ने से साफ मना कर दिया. दरअसल, वो विभाजन की त्रासदी से बहुत ज्यादा आहत थे. उस समय महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं 15 अगस्त पर खुशी नहीं मना सकता. मैं आपको धोखा नहीं देना चाहता, लेकिन साथ ही, मैं यह भी नहीं कहूंगा कि आपको जश्न नहीं मनाना चाहिए. दुर्भाग्य से, आज जिस तरह से हमें आज़ादी मिली है, उसमें भविष्य में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष के बीज भी छिपे हैं. ऐसे में हम दीये कैसे जला सकते हैं? मेरे लिए, आज़ादी की घोषणा करने से ज़्यादा ज़रूरी है हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शांति.
15 अगस्त को कहां थे महात्मा गांधी?
स्वतंत्रता के दस्तावेज़ों का दावा है कि गांधीजी उस समय बंगाल में शांति लाने के लिए कलकत्ता में थे. दरअसल, वहां हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक साल से भी ज़्यादा समय से संघर्ष चल रहा था. महात्मा गांधी 9 अगस्त, 1947 को नोआखली जाने के लिए कलकत्ता पहुंचे. जहां, वो एक मुस्लिम बस्ती, हैदरी मंज़िल में रुके और बंगाल में शांति लाने और रक्तपात रोकने के लिए भूख हड़ताल शुरू कर दी. उन्होंने 13 अगस्त, 1947 को लोगों से मिलकर शांति प्रयासों की शुरुआत की. उस समय, महात्मा गांधी से कहा गया था कि अगर वो कलकत्ता में शांति ला सकें, तो उस समय का पूरा बंगाल सामान्य स्थिति और सद्भाव में लौट आएगा.