What is Pink Tax : इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसे Instagram यूजर rohitjoshi.ig ने शेयर किया है. इस वीडियो में बताया गया है कि कैसे महिलाएं अक्सर सिर्फ ‘पिंक कलर’ देखकर प्रोडक्ट खरीद लेती हैं और यही वजह बनती है एक छिपे हुए खर्च की, जिसे ‘पिंक टैक्स’ कहा जाता है.
अब आप सोच रहे होगें ये पिंक टैक्स क्या होता है, तो मैं आपको बता दूं की ये कोई सरकारी टैक्स नहीं है. इसे सरकार नहीं बल्कि ब्रांड्स खुद तय करते हैं. ये टैक्स उन प्रोडक्ट्स पर लगाया जाता है जो खास तौर पर महिलाओं के लिए बनाए गए होते हैं जैसे कि पिंक कलर के रेजर, बॉडी वॉश, शैम्पू, टी-शर्ट्स या अन्य पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स. इनका फॉर्मूला, साइज और इस्तेमाल लगभग वही होता है जो पुरुषों के लिए बनाए गए प्रोडक्ट्स में होता है. फर्क सिर्फ इतना होता है कि महिलाओं वाले प्रोडक्ट्स को गुलाबी रंग, फूलों की खुशबू या ‘फेमिनिन’ पैकेजिंग देकर पेश किया जाता है और फिर उन्हें ज्यादा कीमत पर बेचा जाता है.
उदाहरण से समझिए
लिप बाम (Lip Balm) : पुरुषों का नीले कलर का लिप बाम ₹100 में बिकता है, वहीं महिलाओं का वही प्रोडक्ट सिर्फ पिंक कलर और फ्लोरल पैकिंग में ₹130 का हो जाता है.
रेजर (Razor) : पुरुषों के लिए रेजर ₹230 का है, वहीं महिलाओं के लिए पिंक कलर का वही रेजर ₹499 में आता है.
ये अंतर सिर्फ दिखावे का है काम और क्वालिटी वही रहती है.
क्यों होता है ऐसा?
ब्रांड्स को पता है कि महिलाएं ‘इम्पल्सिव बायर्स’ होती हैं, यानी वे सुंदर दिखने वाले और खुशबूदार प्रोडक्ट्स के लिए बिना ज्यादा सोचे-समझे पैसे खर्च कर देती हैं. इसी आदत का फायदा उठाकर कंपनियां उन पर ज्यादा चार्ज करती हैं.
स्टडीज के मुताबिक, महिलाएं पुरुषों के मुकाबले समान प्रोडक्ट्स के लिए 7% से 13% ज्यादा कीमत चुकाती हैं.
फर्क सिर्फ दाम में नहीं, आमदनी में भी
यहां तक कि समान काम के लिए भी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है. उदाहरण के लिए, किसी एक काम के लिए पुरुष को ₹100 मिलते हैं तो महिला को सिर्फ ₹80 मिलते हैं. ऐसे में महिलाएं कम कमाती हैं, कम सेव करती हैं और कम निवेश कर पाती हैं – जिससे धीरे-धीरे वेल्थ गैप (धन में असमानता) बढ़ती जाती है.
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हम क्या कर सकते हैं?
समाज के तौर पर हमें ऐसे भेदभाव वाले प्रोडक्ट्स और प्राइसिंग को पहचानना और नकारना चाहिए.
जागरूक बनें.
पिंक टैक्स वाले प्रोडक्ट्स को खरीदने से बचें.
सरकार और कंपनियों से समान प्राइसिंग की मांग करें.
क्योंकि रंग सिर्फ पसंद का होता है कीमत का नहीं होना चाहिए.