Deep Sea Oil Extraction: समुद्र की गहराई में छिपे तेल और गैस को निकालने की प्रक्रिया जितनी रोमांचक है, उतनी ही जोखिम भरी भी. हज़ारों फीट की गहराई पर, जहां इंसान पहुंच नहीं सकता, अत्याधुनिक मशीनों और वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रक्रिया को अपतटीय ड्रिलिंग कहते हैं—समुद्र तल के नीचे तेल और गैस के भंडारों तक पहुंचना.
सबसे पहले लगाया जाता है तेल का पता
सबसे पहले, वैज्ञानिक भूकंपीय सर्वेक्षणों का उपयोग करके यह पता लगाते हैं कि समुद्र की सतह के नीचे तेल और गैस कहां स्थित हैं. ध्वनि तरंगें समुद्र में उत्सर्जित की जाती हैं, और उनके परावर्तनों का विश्लेषण करके अंतर्निहित परतों और हाइड्रोकार्बन (तेल और गैस) की उपस्थिति का पता लगाया जाता है. सही स्थान की पहचान करने के बाद, वहाँ एक ड्रिलिंग रिग—एक विशाल प्लेटफ़ॉर्म जो समुद्र की लहरों के बीच भी स्थिर रहता है—स्थापित किया जाता है.
सैकड़ों मीटर गहरे छेद किए जाते
फिर, ड्रिल बिट्स का उपयोग करके, समुद्र तल में सैकड़ों मीटर गहरे छेद किए जाते हैं. जैसे ही ड्रिल पाइप नीचे उतरता है और तेल और गैस के भंडारों तक पहुंचता है, ये प्राकृतिक संसाधन सतह पर आने लगते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान, ब्लोआउट प्रिवेंटर (बीओपी) जैसे सुरक्षा उपकरण यह सुनिश्चित करते हैं कि अत्यधिक दबाव के कारण विस्फोट न हो.
तेल और गैस को किया जाता है अलग
निकाल दिए गए तेल और गैस को ऊपर प्लेटफ़ॉर्म पर अलग किया जाता है. गैस को पाइपलाइनों के माध्यम से सीधे ज़मीन पर भेजा जाता है, जबकि कच्चे तेल को टैंकरों के माध्यम से रिफ़ाइनरियों तक पहुंचाया जाता है, जहाँ इसे पेट्रोल, डीज़ल, केरोसिन और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है.
उन्नत मशीनों का होती है महत्वपूर्ण भूमिका
इस पूरी प्रक्रिया में डीपवाटर रिग, सबसी पंप और रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल्स (आरओवी) जैसी उन्नत मशीनें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. भारत में मुंबई हाई जैसे कई प्रमुख अपतटीय तेल क्षेत्र देश की ऊर्जा ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा पूरा करते हैं. समुद्र की इन गहराइयों से निकाला गया यह “काला सोना” विश्व अर्थव्यवस्था की धड़कन बना हुआ है.
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