Panna Dhai: मेवाड़ का इतिहास सदैव इस वीरांगना का ऋणी रहेगा जिनका नाम पन्नाधाय था. जिहोने मेवाड़ राजवंश बचने के लिए अपने ही लाल का बलिदान दे दिया. यह कथा 1536 की है. पन्नाधाय मेवाड़ के राजा राणा सांगा के दरबार में एक सेविका थीं. राणा उदयसिंग की पालनमाता थी. उन्होंने ने इनको अपने पुत्र की तरह पाला था. राणा सांगा की मृत्यु के बाद राज्य की स्थिति डगमगाने लगी और कई राजघराने सत्ता पर अधिकार जमाने की कोशिश करने लगे. जब मेवाड़ में कठिनाईया चल रही थी तब जो राणा सांगा के भतीजे थे. बनबीर सिंह राजनीतिक अस्थिरता का फायदा उठाकर गद्दी हथियाने की कोशिश की थी. पन्नाधाय एक साधारण धाय नहीं थीं, बल्कि उन्हें राज्य और उसके भविष्य की गहरी चिंता थी.
बनबीर सिंह का षड्यंत्र
वह राणा सांगा के असली उत्तराधिकार बालक राणा उदयसिंह को मारकर खुद राजा बनना चाहता था. उदयसिंह उस समय बहुत छोटे थे और पन्नाधाय के संरक्षण में रहते थे. एक रात बनबीर सिंह तलवार लेकर राजा उदय सिंह की हत्या करने निकल पड़ा. लेकिन इस बात की खबर पन्ना धय को लग गयी. पन्ना धाय ने अपने पुत्र चंदन (जो उम्र में उदयसिंह के बराबर था) को सोते हुए राजकुमार को राणा उदयसिंह के कपडे पहनाकर पलंग पर रख दिया और स्वयं राजकुमार को महल से दूर एक गुप्त स्थान पर ले गईं. इधर बनवीर सिंह आया और पलंग पर बच्चे को देख उसने उदय सिंह समझकर हवा में तलवार को लहराते हुए चंदन को दो भागों में काट दिया.
कैसे हुआ उदयसिंह की वापसी?
राणा उदयसिंह को सुरक्षित स्थानों पर छिपाकर रखा गया और जब वह योग्य हुए, तो चित्तौड़ की प्रजा और सेनापतियों ने उन्हें पुनः राजा घोषित किया। उनके शासन में मेवाड़ को फिर से स्थिरता मिली थी.
पन्नाधाय का क्या महत्व था?
पन्नाधाय का बलिदान सिर्फ एक धाय माता का कार्य नहीं था. बल्कि राज्य की रक्षा के लिए अपनी मां की ममता को भी पीछे छोड़ दिया. इतिहास में ऐसा बलिदान शायद किसी ने दिया था. ऐसा शायद कोई दे भी ना पाए इस बलिदान ने पन्ना धाय को इतिहास में हमेशा के लिए कर दिया. पन्नाधाय की कहानी साहस, निष्ठा और बलिदान की प्रतीक है.