तमिल सिनेमा की दुनिया में कई महानायक हुए हैं, लेकिन कुछ ऐसे सितारे होते हैं जिन्हें उनके फैंस भगवान की तरह पूजते हैं. ऐसे ही एक अनमोल नायक थे शिवाजी गणेशन, जिनका नाम आज भी दिलों में श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है. आइए जानते हैं उनकी जिंदगी और करियर की अनकही दास्तां.
शिवाजी गणेशन का जन्म 1 अक्टूबर 1928 को मद्रास के तंजौर जिले में हुआ था. उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था. उनका असली नाम विल्लुपुरम चिन्नैया पिल्लई गणेश मूर्ति था, लेकिन सिनेमा की दुनिया में आने के बाद उन्हें शिवाजी गणेशन के नाम से जाना जाने लगा. ये नाम उन्हें उनकी प्रसिद्धि और कला के कारण मिला, जो बाद में तमिल सिनेमा में एक पहचान बन गया.
थिएटर से बड़े पर्दे तक का सफर
शिवाजी गणेशन ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत थिएटर से की. एक नाटक ‘शिवाजी कांड साम्राज्यम’ में शिवाजी का किरदार निभाकर उन्होंने लोगों के दिलों में अपनी एक अलग छवि बनाई. उनकी एक्टिंग की तारीफें इतनी ज्यादा हुईं कि लोग उन्हें उसी नाम से पुकारने लगे. थिएटर के मंच से निकलकर उन्होंने फिल्मों में कदम रखा और 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. उनकी हिट फिल्मों में ‘पाराशक्ति’, ‘नवरात्रि’, ‘कर्णन’, ‘थिल्लांना मोहनम्बाल’, और ‘कप्पालोटिया थमिजान’ जैसे नाम शामिल हैं, जिन्होंने उनके करियर में मील का पत्थर साबित किया.
दिवानों की भीड़ और भगवान जैसी भक्ति
शिवाजी गणेशन के फैंस उनके लिए सिर्फ दर्शक नहीं थे, बल्कि उनके प्रति एक गहरी श्रद्धा और भक्ति रखते थे. खासकर महिला फैंस उनकी पूजा करती थीं. जब भी उनकी कोई फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज होती, तो महिलाएं आरती की थाली लेकर उनके दर्शन के लिए आतीं और सिनेमाघर में उनकी आरती करतीं. ये उनकी लोकप्रियता का ही प्रमाण था कि उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ती थीं.
बचपन से ही अभिनय का जुनून
शिवाजी के अंदर बचपन से ही एक्टिंग का गहरा जुनून था, लेकिन उनके परिवार वाले इस पेशे के खिलाफ थे. 7 साल की उम्र में उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि वे थिएटर और मंचों पर अभिनय करेंगे. परिवार वालों की मना करने के बावजूद, उन्होंने 10 साल की उम्र में अपने सपनों को पूरा करने के लिए घर छोड़ दिया और एक ड्रामा कंपनी के साथ जुड़ गए. उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें आगे बढ़ने में मदद की.