मातृभूमि: एक ऐसी फिल्म जो दिल दहला देगी
भारतीय सिनेमा में कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं जो सिर्फ मनोरंजन नहीं करतीं बल्कि समाज को आईना दिखाती हैं। ये फिल्में हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि असल में हम किस तरह की दुनिया में जी रहे हैं और किन मुद्दों को नज़र अंदाज़ कर रहे हैं। ऐसी ही एक फिल्म है “मातृभूमि: ए नेशन विदाउट विमेन”।
साल 2003 में रिलीज़ हुई यह फिल्म आज भी चर्चा का विषय है, क्योंकि इसका सब्जेक्ट बेहद बोल्ड और शॉकिंग है। यह फिल्म उन कड़वी सच्चाइयों को सामने लाती है जिन्हें समाज अक्सर दबा देता है। निर्देशक मनीष झा ने इस फिल्म के ज़रिए जेंडर इमबैलेंस, बच्चियों की हत्या और समाज में महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय को बेहद झकझोर देने वाले अंदाज़ में दिखाया।
ऐसी कहानी जो आपको हिला कर रख देगी
फिल्म की शुरुआत एक बच्ची के जन्म से होती है। पिता को उम्मीद होती है कि बेटा पैदा होगा, लेकिन जब बेटी का जन्म होता है तो वह उसे बोझ मानकर मार डालता है। यही सिलसिला लगातार चलता है और धीरे-धीरे गांव में बेटियों का जन्म होना लगभग बंद हो जाता है। कहानी आगे बढ़ती है और सालों बाद वही गांव ऐसा बन जाता है जहां सिर्फ पुरुष ही रह जाते हैं। बुज़ुर्ग महिलाएं तो बची होती हैं, लेकिन शादी करने और परिवार बसाने के लिए लड़कियां नहीं मिलतीं। नतीजा यह होता है कि गांव के पुरुष फ्रस्ट्रेशन में अजीब हरकतें करने लगते हैं – पोर्न देखते हैं, नाचने वालों के साथ बदसलूकी करते हैं और यहां तक कि जानवरों के साथ भी।
पांच भाइयों से एक लड़की की शादी
गांव का एक रईस आदमी अपनी बहू दूर से लेकर आता है। लड़की का नाम कल्कि होता है (जिसे ट्यूलिप जोशी ने निभाया है)। पहले तो उसकी शादी बड़े बेटे से होती है, लेकिन बाद में वही लड़की पांचों भाइयों की पत्नी बना दी जाती है। कल्कि की ज़िंदगी नर्क बन जाती है। हर हफ्ते उसे एक भाई के साथ सोना पड़ता है। यहां तक कि उसका ससुर भी उसके साथ संबंध बनाता है। इस मजबूरी और अपमानजनक जीवन के बीच सिर्फ सबसे छोटा भाई ही उसके साथ इंसानियत से पेश आता है। धीरे-धीरे कल्कि और छोटे भाई में एक जुड़ाव बनने लगता है, लेकिन बाकी भाई इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते और छोटे भाई की हत्या कर देते हैं।
प्रेग्नेंसी और गांव का पागलपन
कल्कि प्रेग्नेंट होती है तो पूरा गांव खुश हो जाता है। सभी लोग सोचते हैं कि बच्चा उनका होगा। गांव का हर मर्द उस बच्चे पर हक जताने लगता है। हालत इतनी बिगड़ जाती है कि गांव वाले आपस में भिड़ जाते हैं। खून-खराबा शुरू हो जाता है और धीरे-धीरे पूरा गांव तबाह होने लगता है। कहानी का क्लाइमेक्स बेहद शॉकिंग और सबक देने वाला है। कल्कि एक बेटी को जन्म देती है। यानि जिस समाज ने बेटियों को बोझ समझकर मार दिया था, वहीं समाज अब एक बेटी के जन्म से खत्म होता है।
फिल्म का असर
“मातृभूमि” देखने वाले ज्यादातर दर्शक मानते हैं कि यह फिल्म उन्हें लंबे समय तक डिस्टर्ब कर गई। यह सिर्फ एक मूवी नहीं बल्कि सच का आइना है। समाज में बेटियों को मारने, जेंडर इमबैलेंस और महिलाओं के प्रति हिंसा जैसे मुद्दों को यह फिल्म बहुत बखूबी से सामने रखती है। यहाँ तक कि सोशल मीडिया पर कई लोगों ने लिखा कि यह फिल्म इतनी हकीकत के करीब है कि देखने के बाद इंसान का दिल और दिमाग झनझोड़ देती है। किसी ने कहा कि “ये मूवी सिर्फ एंटरटेनमेंट नहीं बल्कि एक सामाजिक चेतावनी है।”
अभिनय और निर्देशन
ट्यूलिप जोशी ने कल्कि का रोल निभाया और उनके अभिनय ने हर किसी को हैरान कर दिया। एक ऐसी लड़की जो मजबूरी और दर्द से भरी ज़िंदगी जी रही है, उसकी भावनाओं को उन्होंने बखूबी पर्दे पर उतारा। इसके अलावा, सुधीर पांडे, पियूष मिश्रा, सुशांत सिंह और आदित्य श्रीवास्तव जैसे कलाकारों ने भी दमदार एक्टिंग की। उनकी परफॉर्मेंस ने फिल्म को और वास्तविक बना दिया।
निर्देशक मनीष झा का साहस काबिल-ए-तारीफ है। ऐसे बोल्ड सब्जेक्ट को उठाना और उसे सच्चाई से पेश करना आसान नहीं होता।
दर्शकों की प्रतिक्रिया
यूट्यूब पर इस फिल्म को 1 साल में 1.9 मिलियन से ज्यादा व्यूज मिले हैं। लोग इसे आज भी देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि क्यों ऐसी फिल्में बार-बार नहीं बनाई जातीं। IMDb पर इसकी 7.7 रेटिंग है, जो यह साबित करती है कि दर्शकों ने इस फिल्म को कितना सराहा। हालांकि यह फिल्म हल्की-फुल्की एंटरटेनमेंट नहीं है, लेकिन जो लोग इसे देखते हैं, वे इसे कभी भूल नहीं पाते।
ये फिल्म क्यों देखनी चाहिए?
अगर आप सिर्फ हंसी-मज़ाक और मसालेदार एंटरटेनमेंट देखना चाहते हैं, तो यह फिल्म शायद आपको भारी लगे। लेकिन अगर आप सिनेमा को समाज का आईना मानते हैं, तो “मातृभूमि” जरूर देखनी चाहिए। यह फिल्म हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि बेटियों के बिना समाज कैसा होगा? और क्या हम सच में ऐसा भविष्य देखना चाहते हैं?