Home > मनोरंजन > बॉलीवुड > Sandhya Shantaram: वो मोहब्बत, जो बनी मिसाल, पहली मुलाकात में खूबसूरती नहीं, आवाज ने मोह लिया था एक फिल्मकार का मन

Sandhya Shantaram: वो मोहब्बत, जो बनी मिसाल, पहली मुलाकात में खूबसूरती नहीं, आवाज ने मोह लिया था एक फिल्मकार का मन

Sandhya Shantaram Love Story: संध्या शांताराम का जीवन सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं था. उनकी मोहब्बत और वी. शांताराम संग उनकी अमर प्रेम कहानी, सिनेमा में एक मिसाल के तौर पर याद की जाती है.

By: Shraddha Pandey | Published: October 4, 2025 5:07:08 PM IST



भारतीय सिनेमा में 1950-60 का दशक कला, संगीत और नृत्य का सुनहरा दौर माना जाता है. इसी दौर में एक साधारण-सी लड़की, विजया देशमुख, फिल्मों की दुनिया में आई और ‘संध्या शांताराम’ बन गईं. वह भले ही आज हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी जिंदगी की कहानी सिर्फ फिल्मों की नहीं, बल्कि एक ऐसी मोहब्बत की भी है जो भारतीय सिनेमा में मिसाल बन गई.

पहली मुलाकात और किस्मत का खेल

संध्या की कहानी शुरू होती है साल 1951 में, जब प्रसिद्ध फिल्मकार वी. शांताराम अपनी फिल्म ‘अमर भूपाली’ के लिए नए चेहरे की तलाश कर रहे थे. उन्होंने जब विजया को देखा तो उनके चेहरे-मोहरे या अभिनय ने नहीं, बल्कि उनकी आवाज ने मन मोह लिया. वह आवाज कुछ-कुछ उनकी पत्नी और अभिनेत्री जयश्री जैसी लगती थी. शांताराम ने उन्हें फिल्म में लिया और विजया ने अपना फिल्मी नाम ‘संध्या’ रख लिया.

यहीं से एक नया सफर शुरू हुआ. अमर भूपाली के बाद तीन बत्ती चार रास्ता, झनक झनक पायल बाजे और नवरंग जैसी फिल्मों ने संध्या को उस दौर की चर्चित अभिनेत्री बना दिया.

मोहब्बत की परछाई

संध्या और वी. शांताराम का रिश्ता शुरू में सिर्फ निर्देशक और अभिनेत्री का था. लेकिन, धीरे-धीरे यह रिश्ता दोस्ती और फिर मोहब्बत में बदल गया. शांताराम की दूसरी पत्नी जयश्री उनसे अलग हो गईं और संध्या उनकी जिंदगी में आईं. उम्र का बड़ा फासला होने के बावजूद दोनों की ट्यूनिंग अद्भुत थी. शांताराम एक कठोर निर्देशक के रूप में मशहूर थे, लेकिन संध्या के साथ उनका रिश्ता बराबरी और भरोसे का था.

संघर्ष और समर्पण

संध्या फिल्मों की दुनिया में नई थीं और उन्हें अभिनय के साथ-साथ नृत्य सीखने की भी चुनौती मिली. झनक झनक पायल बाजे के लिए उन्होंने कथक के उस्ताद गोपी कृष्ण से महीनों तक कठोर ट्रेनिंग ली. फिल्म सुपरहिट हुई और चार-चार फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतकर इतिहास बना गई.

नवरंग के समय संध्या का अभिनय और भी परिपक्व हो गया. फिल्म के होली गीत में जब उन्होंने हाथी के साथ नृत्य किया, तो दर्शक दंग रह गए. यही नहीं, स्त्री फिल्म के लिए उन्होंने असली शेरों के बीच बिना बॉडी डबल के अभिनय किया. यह उनकी हिम्मत और समर्पण का सबसे बड़ा प्रमाण था.

अमर मोहब्बत और अमर यादें

संध्या का आखिरी बड़ा रोल मराठी फिल्म पिंजरा में था, जिसमें उन्होंने अपने करियर का सबसे अद्भुत परफॉर्मेंस दिया. इसके बाद वह धीरे-धीरे पर्दे से दूर हो गईं. लेकिन, वी. शांताराम के साथ उनकी जोड़ी ने फिल्मों को जो सौंदर्य और संवेदनशीलता दी, वह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गई.

संध्या और वी. शंतराम की लव स्टोरी आम नहीं थी. यह दो कलाकारों की आत्मिक जुगलबंदी थी. जहां एक ने सृजन किया और दूसरी ने उसे जीवन दिया. शांताराम के लिए संध्या सिर्फ उनकी फिल्मों की नायिका नहीं थीं, बल्कि असल जीवन में उनकी प्रेरणा भी थीं.

विरासत

2009 में जब उन्होंने नवरंग के 50 साल पूरे होने पर वी. शंतराम अवॉर्ड समारोह में शिरकत की, तो दर्शकों ने उन्हें खड़े होकर तालियों से सम्मान दिया. यह इस बात का सबूत था कि भले ही वह पर्दे से दूर हो चुकी थीं, लेकिन लोगों के दिलों में उनकी जगह कभी कम नहीं हुई.

आज संध्या शांताराम भले ही इस दुनिया से चली गई हों, लेकिन उनकी मोहब्बत और उनकी फिल्मों की चमक हमेशा भारतीय सिनेमा की यादों में जिंदा रहेगी.

Advertisement