Nathuram Godse and Narayan Apte’s Execution: महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर साल 1949 को हरियाणा के अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी की सजा दी गई थी. दोनों दोषियों को फांसी की सजा देने के बाद जेल परिसर नें ही बड़े ही गोपनीय तरीके से उन दोनों का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया था.
महात्मा गांधी के हत्यारों का गोपनीय अंतिम संस्कार
महात्मा गांधी की हत्या के दोषी नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को हरियाणा के अंबाला सेंट्रल जेल में फांस की सजा दी गी थी. लेकिन क्या आप यह जानते हैं दोनों दोषियों का बड़े ही गोपनीय तरीके से अंतिम संस्कार भी किया गया था. सरकार का फैसला साफ था कि उनके शव परिवार को किसी भी हाल में नहीं दिए जाएंगे ताकि गोडसे या आप्टे को किसी भी प्रकार से सार्वजनिक रूप से महिमामंडित न किया जा सके
शव का अंतिम संस्कार करने के बाद पुलिस सुरक्षा में घग्गर नदी की तेज धारा में प्रवाहित कर दिया गया था, और यह सब इतना चुप-चाप तरीके से किया गया कि संबंधित अधिकारी भी इस बात से बेहद ही अंजान थे.
कब और कैसे हुई थी महात्मा गांधी की हत्या?
महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 की हुई थी. जब एक प्रार्थना सभा के दौरान गोडसे ने उन पर ताबड़तोड़ तीन बार गोलयां भी चलाई थी. सरकारी पक्ष ने इसे एक सोची समझी हुई साजिश बताया था. 10 फरवरी 1949 को विशेष अदालत ने नौ अभियुक्तों में से विनायक दामोदर सावरकर को बरी कर दिया, जबकि गोडसे और आप्टे को मौत की सजा के साथ-साथ बाकि के छह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. तो वहीं, दूसरी तरफ मुकदमे के दौरान गोडसे ने अपने बचाव में काफी लंबा भाषण भी दिया था, जिसमें उसने गांधीजी की नीतियों को राष्ट्र के लिए हानिकारक बताया था.
फांसी से पहले कैसी थी दोनों की मानसिक स्थिति?
फांसी की सजा से पहले दोनों की मानसिक स्थिति थोड़ी अलग थी. जहां, गोडसे कुछ उदास और कमजोर था तो वहीं, दूसरी तरफ आप्टे की मानसिक स्थिति बेहद स्थिर थी. फांसी के दौरान गोडसे ने अखंड भारत का नारा लगाया तो वहीं आप्टे ने अमर रहे का नारा लगाया था. आप्टे की मृत्यु तुरंत हो गई थी, जबकि गोडसे की मृत्यु को कुछ क्षण लगे थे.
फांसी के बाद जिलाधिकारी स्टाफ ने दोनों की मृत्यु की पुष्टि की थी और सरकारी आदेशनुसार अंतिम संस्कार किया था. परिजनों को शव नहीं दिए थे इसलिए अस्थियों के विसर्जन की जिम्मेदारी भी प्रशासन ने पूरी तरह से निभाई थी. गोडसे के भाई गोपाल गोडसे और अन्य दोषियों ने अपनी आजीवन सजा पूरी कीथी और रिहा होने के बाद गोपाल गोडसे ने साल 1966 में गांधी हत्या पर अपनी पुस्तक सभी के सामने प्रकाशित की थी.
जस्टिस जे.एल. कपूर आयोग ने की थी मामले की जांच
बाद में 1966 में जस्टिस जे.एल. कपूर आयोग ने महात्मा गांधी की हत्या के मामले की दोबारा से जांच की थी. रिपोर्ट में नारायण आप्टे की पहचान को लेकर कुछ संदेह व्यक्त किए गए था, जिसमें यह दावा सामने आया था कि वह कभी भारतीय वायु सेना में नहीं रहा था. हांलाकि, बाद में कुछ स्वतंत्र शोधकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाते हुआ कहा था कि आप्टे ब्रिटिश खुफिया एजेंसी ‘फ़ोर्स 136’ का सदस्य था और गांधीजी पर चौथी गोली उसी ने चलाई. लेकिन, यह दावा किसी भी तरह से सच साबित नहीं हो पाया था.