सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन (CBI) ने एक बड़े और संगठित अंतरराष्ट्रीय साइबर धोखाधड़ी नेटवर्क का पर्दाफाश किया है और चार विदेशी नागरिकों सहित 17 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की है. जांच एजेंसी ने 58 कंपनियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है. जांच में पता चला कि इस साइबर नेटवर्क के जरिए देश और विदेश दोनों जगह ₹1000 करोड़ से ज़्यादा की अवैध रकम का लेन-देन किया गया है.
CBI जांच में पता चला कि यह संगठित गिरोह धोखेबाज लोन ऐप, नकली निवेश योजनाओं, पोंजी और MLM मॉडल, धोखाधड़ी वाले पार्ट-टाइम नौकरी के ऑफ़र और धोखाधड़ी वाले ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म के ज़रिए लोगों को ठग रहा था. इन सभी गतिविधियों के पीछे एक ही नेटवर्क काम कर रहा था.
पहली गिरफ्तारियां अक्टूबर 2025 में हुई
CBI ने अक्टूबर 2025 में इस मामले में तीन मुख्य भारतीय सहयोगियों को गिरफ्तार किया है. इसके बाद जांच का दायरा बढ़ाया गया है. जिससे साइबर और वित्तीय अनियमितताओं की परतों की विस्तृत जांच हुई है.
I4C से मिले इनपुट के बाद मामला दर्ज
यह मामला गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले I4C (इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर) से मिले इनपुट के आधार पर दर्ज किया गया था. शुरुआत में ये मामले अलग-अलग शिकायतें लग रही थी. लेकिन CBI के विस्तृत विश्लेषण से ऐप, फंड फ्लो पैटर्न, पेमेंट गेटवे और डिजिटल फुटप्रिंट में चौंकाने वाली समानताएं सामने आई है.
CBI जांच में पता चला कि इस साइबर धोखाधड़ी नेटवर्क की रीढ़ 111 शेल कंपनियां थी. ये कंपनियां फर्जी निदेशकों जाली या गुमराह करने वाले दस्तावेज़ों, नकली पतों और झूठे व्यावसायिक उद्देश्यों के साथ रजिस्टर्ड थी. इन शेल कंपनियों के नाम पर बैंक खाते और पेमेंट गेटवे मर्चेंट खाते खोले गए थे, जिनका इस्तेमाल अपराध की कमाई को तेज़ी से इधर-उधर करने और छिपाने के लिए किया जाता था.
₹1000 करोड़ से ज़्यादा के लेन-देन
CBI ने सैकड़ों बैंक खातों का विश्लेषण किया, जिससे पता चला कि इन खातों के जरिए ₹1000 करोड़ से ज़्यादा का लेन-देन किया गया था. सिर्फ़ एक बैंक अकाउंट में ही कम समय में ₹152 करोड़ से ज़्यादा आए.
27 जगहों पर छापे डिजिटल सबूत बरामद
CBI ने कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, झारखंड और हरियाणा में कुल 27 जगहों पर तलाशी अभियान चलाया है. इन छापों के दौरान बड़ी संख्या में डिजिटल डिवाइस, दस्तावेज और फाइनेंशियल रिकॉर्ड जब्त किए गए और उनकी फोरेंसिक जांच की गई है.
ऑपरेशन विदेश से कंट्रोल हो रहे थे
फोरेंसिक जांच से पता चला कि पूरा साइबर फ्रॉड नेटवर्क विदेश से ऑपरेट किया जा रहा था. जांच में यह भी पता चला कि दो भारतीय आरोपियों के बैंक खातों से जुड़ी एक UPI ID अगस्त 2025 तक विदेश से एक्टिव थी. इससे साफ पता चलता है कि न सिर्फ़ विदेश से मॉनिटरिंग की जा रही थी, बल्कि रियल-टाइम ऑपरेशनल कंट्रोल भी किया जा रहा था.
विदेशी मास्टरमाइंड 2020 से काम कर रहे थे
CBI जांच में यह भी पता चला कि विदेशी हैंडलर्स के कहने पर 2020 से भारत में शेल कंपनियां बनाई जा रही थी. इन विदेशी मास्टरमाइंड्स की पहचान ज़ू यी, हुआन लियू, वेइजियान लियू और गुआनहुआ वांग के रूप में हुई है.
भारतीय साथियों ने आम नागरिकों से पहचान पत्र इकट्ठा किए और उनके नाम पर कंपनियां रजिस्टर करवाईं और बैंक खाते खोले है. इसके बाद साइबर फ्रॉड से मिले पैसे को मनी ट्रेल छिपाने के लिए कई प्लेटफॉर्म और खातों के जरिए भेजा गया है.