Prashant Kishor: बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। आगामी विधानसभा चुनावों से पहले जन सुराज अभियान के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने एक बार फिर ऐसा बयान दिया है जिसने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। दरभंगा के बहादुरपुर स्थित बरूआरा दुर्गा मंदिर मैदान में आयोजित ‘बिहार बदलाव’ सभा में पीके ने जो कहा, उससे न केवल विपक्षी दलों को सीधी चुनौती मिली, बल्कि राज्य के युवाओं में एक नई उम्मीद भी जगी है। साथ ही तेजस्वी यादव और उनके समर्थकों के बीच आक्रोश फ़ैल सकता है। किशोर के बयान से एक बार फिर से सियासी घमसान होने वाला है। प्रशांत किशोर ने लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव को नौवीं फेल बता दिया है।
प्रशांत किशोर ने साफ कहा कि बिहार के लोगों ने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विकास के नाम पर वोट दिया, लेकिन अब स्थिति ये है कि बिहार के नौजवान गुजरात और महाराष्ट्र में मजदूरी करने को मजबूर हैं। उन्होंने अपील की कि “इस बार वोट अपनी जाति-धर्म देखकर नहीं, बल्कि अपने बच्चों की शिक्षा और रोजगार के नाम पर दें।”
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बिहार के युवाओं के लिए बड़ी घोषणा
प्रशांत किशोर ने सभा में ऐलान किया कि यदि उनकी सरकार बनती है तो बिहार के 50 लाख युवाओं को 10 से 12 हजार रुपये की मासिक आमदनी वाली नौकरी राज्य में ही दी जाएगी। उनका दावा है कि छठ पूजा के बाद से दरभंगा और आसपास के युवाओं को रोजगार के लिए घर छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
लालू यादव और नीतीश कुमार पर निशाना
प्रशांत किशोर ने अपने भाषण में लालू प्रसाद यादव पर भी कटाक्ष किया और कहा कि “वे अपने नौवीं फेल बेटे को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं, जबकि बिहार का शिक्षित युवा बेरोजगारी से जूझ रहा है।” साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी हमला बोला और कहा कि जन सुराज के उभार से डरे नीतीश कुमार अब पेंशन और मानदेय बढ़ाने जैसे कदम उठा रहे हैं।
बुजुर्गों और बच्चों के लिए भी योजनाएं
पीके ने वादा किया कि दिसंबर 2025 से राज्य में 60 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को 2000 रुपये मासिक पेंशन दी जाएगी। इसके साथ ही 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को निजी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा दिलाई जाएगी।
प्रशांत किशोर के इन बयानों से साफ है कि वे बिहार में एक नए राजनीतिक विकल्प के रूप में खुद को स्थापित करना चाहते हैं। उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे – रोजगार, शिक्षा, पेंशन और विकास – सीधे तौर पर जनता की जरूरतों से जुड़े हैं। चुनावी मौसम में ऐसे वादों से राजनीति में नया मोड़ आ सकता है। अब देखना यह होगा कि जनता इन वादों पर कितना विश्वास जताती है।