Bihar Election Results 2025: बिहार चुनाव की तस्वीर अब लगभग साफ़ हो गई है. 243 में से 203 सीटों के साथ एनडीए रिकॉर्ड जीत की ओर बढ़ रहा है, जबकि महागठबंधन को सिर्फ़ 35 सीटें ही मिल रही हैं. एनडीए को 2020 के मुकाबले 70 से ज़्यादा सीटों का फ़ायदा हो रहा है, जबकि महागठबंधन को लगभग उतना ही नुकसान हो रहा है. वोट चोरी से लेकर बेरोजगारी तक हर मुद्दे पर नीतीश और मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की. लेकिन ये सब उनके काम नहीं आया.
इसके अलावा तेजस्वी ने युवाओं, महिला वोटर्स को अपने पक्ष में लाने के लिए काफी वादें किए. लेकिन जैसा दिख रहा है कि बिहारी जनादेश ने उन्हें पूरी तरह से किनारा कर दिया. चलिए एक बार उन फैक्टर्स पर नजर डाल लेते हैं जिसके चलते एनडीए को भारी जीत औऱ महागठबंधन का ये हाल हो गया. चलिए आरजेडी की हार के उन कारणों पर एक नजर डाल लेते हैं.
RJD के काम नहीं आया ‘Y-M’ समीकरण
नतीजों और रुझानों के अनुसार, महागठबंधन की मुख्य सहयोगी राजद इस बार सिर्फ़ 26 सीटों पर सिमटती दिख रही है, जबकि कांग्रेस को 6 सीटें मिलने का अनुमान है. राजद का पारंपरिक वोट बैंक मुस्लिम और यादव समुदाय रहा है. पार्टी ने इस चुनाव में 50 यादव और 18 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. इसके बावजूद नतीजे बेहद निराशाजनक रहे.
ओवैसी ने खराब किया RJD का खेल
एक और महत्वपूर्ण आंकड़ा यह है कि इस बार मुस्लिम मतदाताओं की एक बड़ी संख्या ने राजद के बजाय ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का समर्थन किया. कई मुस्लिम बहुल इलाकों में एआईएमआईएम ने राजद के वोटों को सीधे तौर पर प्रभावित किया, जिससे महागठबंधन को नुकसान हुआ.
RJD की जगह JDU को मिला मुस्लिम वोट
एक और अहम वजह यह रही कि कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता जेडीयू की ओर खिसक गए. जहां जेडीयू और आरजेडी के मुस्लिम उम्मीदवार आमने-सामने थे, वहां जेडीयू को स्पष्ट बढ़त मिलती दिखी. यह रुझान आरजेडी के पारंपरिक समीकरणों के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ.
कई जगह कटे आरजेडी के वोट
राजद को यादव मतदाताओं के असंतोष का भी सामना करना पड़ा. जिन सीटों पर यादव मतदाता आमतौर पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं, वहाँ इस बार वोटों का बिखराव देखा गया. इसके अलावा, जनसुराज पार्टी के चुनाव मैदान में उतरने से भी महागठबंधन के लिए सिरदर्द पैदा हुआ, जिसने कई इलाकों में विपक्षी वोटों में सेंध लगाई.
यादव समेत अन्य समुदायों का एनडीए की तरफ झुकाव
इसके अलावा, राज्य और केंद्र की सत्ताधारी सरकार ने अपनी योजनाओं के माध्यम से जातीय राजनीति की परंपरागत धारणाओं को काफी हद तक प्रभावित किया. नीतीश कुमार की योजनाओं से लाभान्वित होने वाले यादव सहित अन्य समुदायों और जातीय समूहों का झुकाव एनडीए की ओर बढ़ा. इसका सीधा असर आरजेडी और महागठबंधन के वोट शेयर पर पड़ा.