बिहार की राजनीति में कुछ सीटें ऐसी हैं जो सिर्फ चुनावी मैदान नहीं, बल्कि किसी नेता की पहचान बन जाती हैं. सुपौल विधानसभा सीट भी उन्हीं में से एक है. जहाँ दशकों से एक ही नाम का दबदबा कायम है. कभी कांग्रेस का गढ़ रही ये सीट अब एक ऐसे चेहरे की वजह से सुर्खियों में रहती है, जो 2000 से आज तक इसे छोड़ने को तैयार नहीं. आखिर क्या है इस सीट का समीकरण, कौन हैं वो नेता जिनकी पकड़ यहाँ अटूट बनी हुई है? आइए जानते हैं सुपौल की राजनीतिक कहानी…
सुपौल जिला बिहार के 38 जिलों में से एक है. इस जिले में पाँच विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं: निर्मली, पिपरा, सुपौल, त्रिवेणीगंज (SC) और छातापुर. सुपौल विधानसभा क्षेत्र सुपौल लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. सुपौल लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं: सुपौल में पाँच और मधेपुरा में एक. निर्मली, पिपरा, सुपौल, त्रिवेणीगंज (SC), छातापुर, सुपौल और सिंहेश्वर (SC) मधेपुरा का हिस्सा हैं. सुपौल सीट के लिए पहली बार चुनाव 1952 में हुए थे.
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किसने कब चुनाव जीता?
1952 – कांग्रेस के लहटन चौधरी जीते.
1957, 1962 – पीएसपी के परमेश्वर कुमार जीते.
1958 (उपचुनाव) – इस सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस के लहटन चौधरी फिर से जीते.
1967, 1969, 1972 – कांग्रेस के उमा शंकर सिंह जीते.
1977 – जनता पार्टी के अमरेंद्र प्रसाद ने यह सीट जीती.
1980 – कांग्रेस (आई) के उमा शंकर सिंह जीते.
1985 – कांग्रेस के प्रमोद कुमार सिंह जीते.
1990, 1995 – जनता दल के विजेंद्र प्रसाद यादव जीते.
जदयू के विजेंद्र प्रसाद यादव 2000 से लगातार इस सीट पर काबिज हैं.
जदयू के विजेंद्र प्रसाद यादव ने 2000, फरवरी 2005, अक्टूबर 2005, 2010, 2015 और 2020 में लगातार इस सीट पर कब्जा जमाया. जदयू के विजेंद्र प्रसाद यादव लगातार इस सीट से जीतते आ रहे हैं. वह पिछले आठ चुनावों से सुपौल सीट से जीतते आ रहे हैं. उन्होंने नीतीश कुमार सरकार में विभिन्न मंत्रालयों का कार्यभार संभाला है.

