Chhat Pooja in Bihar Election: ‘जोड़े-जोड़े फलवा सुरुज देव,घटवा पे तिवाई चढ़ावेले हो’ जब छठ का ये गीत दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बजा तो घर जा रहे लोगों के रोगंटे खड़े हो गए. रेलवे ने इसको लेकर कहा कि इस बार 12,000 से अधिक विशेष ट्रेनें और हजारों नियमित ट्रेनें चलाई गई हैं. जिससे छठ पर्व पर लोग आसानी से अपने घर पहुंच सकें. रेल अधिकारियों का कहना है कि स्टेशन उद्घोषणा प्रणाली के माध्यम से छठ गीतों के साथ यात्रियों का स्वागत शायद पहली बार हो रहा है, जिससे दूर-दराज से आने वाले लोग भी बिहार की सोंधी संस्कृति से जुड़ पा रहे हैं.अब बिहार के महापर्व छठ की एंट्री आस्था और संस्कृति के बाद पॉलिटिक्स में पहुंच गया है. राहुल गांधी से लेकर पीएम मोदी तक हर कोई वोटरों को साधने के लिए छठ पर बयान दे रहा है. तो चलिए जानते हैं कि चुनावी राज्य बिहार में छठ का कितना महत्व है?
पॉलिटिक्स में हुई छठ की एंट्री
राहुल गांधी के एक बयान के बाद छठ की एंट्री बिहार के लोगों के घरों और घाटों से उठकर चुनावी मंच पर हुई. राहुल गांधी जो कि चुनावी राज्य में महागठबंधन का चेहरा हैं उन्होने हाल ही मेंं अपने एक बयान में कहा था कि “आपने टीवी पर वह ड्रामा देखा होगा कि मोदी छठ पूजा के लिए यमुना में डुबकी लगाने जा रहे थे. जब यह खुलासा हुआ कि नदी इतनी गंदी है, तो साफ, पाइप से आने वाले पानी से एक गड्ढा बना दिया गया था, तो इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.”
पीएम मोदी ने दिया जवाब
इसके बाद छठ का यह मुद्दा आग कि तरह सियासी गलियारों में फैल गया पीएम मोदी ने इसका जवाब देते हुए मुजफ्फरपुर की जनसभा में कहा कि छठ महापर्व बिहार और देश का गौरव है. देश और दुनिया में छठ महापर्व मनाया जाता है. हमलोग छठ की गीत सुनकर भावविभोर हो जाते हैं. छठी मैया में मां की भक्ति, समता, ममता और सामाजिक समरसता है. छठ महापर्व को मानवता के महापर्व के रूप में मनाते हैं. हमलोग कोशिश कर रहे हैं कि यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में छठ महापर्व शामिल हो. यह सूची बड़ी जांच पड़ताल और लंबी प्रकिया के बाद यह सूची बनती है. हमारी सरकार कोशिश कर रही है कि यूनेस्को की इस सूची में छठ महापर्व का नाम शामिल हो. अगर ऐसा होता तो हर बिहारियों को गर्व होगा.
पीएम मोदी ने कहा कि आपने देखा है कि आपका बेटा तो छठी मैया का जय जयकार पूरी दुनिया में कराने में लगा है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस और राजद के लोग छठी मैया का अपमान कर रहे हैं. आप मुझे बताइए क्या कोई कभी चुनाव में वोट के लिए छठी मैया का अपमान कर सकता है? क्या बिहार यह अपमान सहन करेगा? राजद और कांग्रेस वाले कैसी बेशर्मी से बोल रहे हैं? उनके लिए छठी मैया की पूजा नौटंकी और ड्रामा है. वह छठी मैया का अपमान कर रहे हैं. जो भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं? जो 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं, उन्हें कांग्रेस और राजद वाले ड्रामा कहते हैं. यह हर उस व्यक्ति का अपमान है, जो छठी मैया में आस्था रखता है. छठ मैया के इस अपमान को बिहार सैकड़ों वर्षों तक भूलने वाला नहीं है. सैकड़ों वर्षों तक इस अपमान को छठी मैया का पूजा करने वाला नहीं भूलेगा.
चुनावी राज्य में छठ का महत्व?
बिहार में 6 नवंबर को पहले चरण का मतदान होने वाला है. जिसकी वजह से छठ का ये मुद्दा तुल पकड़ रहा है. बिहार के लोगों के लिए ‘छठ’ केवल एक त्योहार नहीं है.यह एक भावना है जो पूरे हिंदू समुदाय को एकजुट करती है. बिहार में छठ को दिवाली से भी ज्यादा महत्व दिया जाता है. विदेश में रहने वाले लोग भी छठ पूजा के मौके पर घर आते हैं. मजदूर से लेकर अफसर तक हर कोई छठ पर घर जाना चाहता हैं.
चार दिन तक चलता है ये पर्व
छठ पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक मनाई जाती है. इस दौरान सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है. छठ पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है.चार दिन तक चलने वाले पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है और समापन उषा अर्घ्य (सूर्योदय के समय का अर्घ्य) के बाद होता है. छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जहां भक्त स्नान करते हैं, पवित्र भोजन करते हैं और अगले दिन के व्रत की तैयारी करते हैं. दूसरे दिन खरना मनाया जाता है. इस दिन, भक्त पूरे दिन उपवास करते हैं और शाम को गुड़ की खीर और रोटी खाते हैं.
इसके बाद वे निर्जला व्रत रखते हैं, जिसका अर्थ है कि वे पानी या भोजन का सेवन नहीं करते हैं. तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाती है जब भक्त सूर्यास्त के समय नदी, तालाब या घाट पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. अगले उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है. इसे छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण क्षण माना जाता है. इस दौरान पुरुष और महिलाएं दोनों अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देव और छठी मैया से प्रार्थना करते हैं.
छठ पूजा की कथा
छठ पूजा की एक कथा राजा प्रियंवद और रानी मालिनी की कहानी से जुड़ी है. कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत संतान न होने से बहुत दुखी थे. संतान प्राप्ति हेतु उन्होंने और उनकी पत्नी ने महर्षि कश्यप के मार्गदर्शन में यज्ञ किया. यज्ञ के बाद, रानी ने खीर का प्रसाद ग्रहण किया और गर्भवती हुईं, लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें एक मृत पुत्र हुआ. इस दुःख से व्याकुल होकर, राजा प्रियव्रत ने अपना जीवन समाप्त करने का निश्चय कर लिया. तभी एक दिव्य देवी उनके समक्ष प्रकट हुईं और बोलीं, “मैं भगवान ब्रह्मा की पुत्री और सृष्टि की छठी शक्ति हूं, इसलिए मुझे षष्ठी देवी या छठी मैया कहा जाता है.” देवी ने राजा से कहा कि यदि वह उनकी पूजा करें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें, तो उन्हें अवश्य ही संतान की प्राप्ति होगी. राजा प्रियव्रत ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को देवी षष्ठी की विधिवत पूजा की. फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. तभी से, इस दिन छठी मैया की पूजा करने की परंपरा शुरू हुई.
भगवान राम और माता सीता ने भी की सूर्य देव की पूजा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान राम के अयोध्या लौटने के बाद छठ व्रत की शुरुआत हुई. लंका के राजा रावण का वध करने के बाद, श्री राम ब्रह्महत्या के पाप से ग्रस्त हो गए. इस पाप के प्रायश्चित के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों से उपाय पूछा. तब मुग्दल ऋषि ने उन्हें कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव की पूजा करने का निर्देश दिया. श्री राम और माता सीता छह दिनों तक मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहे और विधि-विधान से सूर्य देव की पूजा की. तभी से, यह परंपरा लोकमान्यता में छठ पर्व के रूप में मनाई जाती है.
द्रौपदी ने रखा छठ व्रत
द्वापर युग में भी छठ व्रत का विशेष महत्व था. ऐसा माना जाता है कि जब पांडव कठिन समय से गुज़र रहे थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा और अपने परिवार की भलाई के लिए सूर्य देव से प्रार्थना की. उनकी भक्ति और विश्वास से प्रसन्न होकर, सूर्य देव ने पांडवों को शक्ति और समृद्धि का आशीर्वाद दिया. दूसरी ओर, दानवीर कर्ण को सूर्य उपासना का प्रथम साधक माना जाता है. वे प्रतिदिन प्रातः नदी में स्नान करके सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे. इसी क्रम से सूर्य उपासना की परंपरा स्थापित हुई, जिसे आज भी छठ पर्व के रूप में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है.
सीमाओं का लांघ कर विदेशों में छठ की धूम
बिहार का महापर्व छठ अब सीमाओं को लांघ कर विदेशों में भी अपनी पहचान बना लिया है. बिहार के प्रवासी अमेरिका से लेकर यूरोप तक जहां भी जाते हैं वहां के लोगों को इस खूबसूरत पर्व से रूबरू कराते हैं.