Bihar Assembly Elections 2025: बढ़ते रुझानों के साथ बिहार में NDA की जीत पक्की होती जा रही है. सुशासन बाबू एक बार फिर बिहार की सत्ता पर काबिज होते हुए दिख रहे हैं. वहीं शपथ ग्रहण की तारीख का एलान कर चुके तेजस्वी यादव को बड़ा झटका लगा है अब तक के रुझानों में राजद केवल 40 सीटों पर आगे चल रही है. ये आकड़े 2020 से बेहद कम हैं .उस समय राजद ने 78 सीटें जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी
90 सीटों पर आगे चल रही है BJP
चुनाव आयोग के अनुसार जदयू 79 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि भाजपा 90 सीटों पर आगे चल रही है. एनडीए की सहयोगी लोजपा-आर को 20 सीटें मिलने का अनुमान है. जीतन राम मांझी की हम भी 4 सीटों पर आगे है.
2010 वाला हो सकता है हाल
इस तरह एनडीए 200 सीटों के आंकड़े की ओर बढ़ रहा है, लेकिन महागठबंधन 50 सीटों तक भी पहुंचता नहीं दिख रहा है. अगर ये रुझान नतीजों में तब्दील होते हैं, तो यह चुनाव राजद के लिए 2010 के चुनाव जैसा होगा, जब जदयू की लहर चली थी और राजद सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गई थी.
इस लिहाज से यह तेजस्वी यादव के राजनीतिक करियर के लिए एक बड़ा झटका है. इसके अलावा, राहुल गांधी भी इस चुनाव में असफलताओं का सामना करते दिख रहे हैं. उन्होंने प्रचार अभियान का नेतृत्व किया, फिर भी कांग्रेस की मात्र पांच सीटों पर जीत एक बड़ा झटका है. कांग्रेस ने यहां 62 सीटों पर चुनाव लड़ा था. राजद की इस दुर्दशा के लिए जो 5 कारण बताएं जा रहे हैं वो इस प्रकार है.
लालू यादव की कमी
बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव ने पृष्ठभूमि में काम किया लेकिन प्रचार से गायब रहे. इस बार, लालू फ़ैक्टर ने दो तरह से काम किया, और दोनों ही राजद के लिए नुकसानदेह साबित हुए. एक ओर लालू की भागीदारी की कमी ने समर्थकों को निराश किया. दूसरी ओर विरोधी “जंगल राज” का बहाना बनाकर लगातार लालू फ़ैक्टर की बात करते रहे, जिससे राजद को भी नुकसान हुआ.
पारिवारिक कलह
तेज प्रताप यादव ने यह चुनाव एक अलग पार्टी बनाकर लड़ा. उन्होंने न केवल खुद को खोया, बल्कि कई जगहों पर राजद को भी नुकसान पहुंचाया. तेज प्रताप के रुख ने राजद के नैरेटिव को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचाया है. पारिवारिक कलह ने राजद को उसी तरह नुकसान पहुंचाया जैसे 2017 में उत्तर प्रदेश में सपा को झटका लगा था.
नीतीश और मोदी की जुगलबंदी
एनडीए ने शुरू से ही बेहतरीन तालमेल बनाए रखा. सीटों का स्पष्ट बंटवारा हो गया और समय रहते प्रचार अभियान तेज़ हो गया. इसके अलावा, नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के एक साथ मंच पर आने से मतदाताओं में विश्वास पैदा हुआ. इस बीच, महागठबंधन बिखरा हुआ दिखाई दिया, जहां लोग अलग-थलग होकर प्रचार कर रहे थे.
10,000 रुपया सरकारी नौकरी पर पड़ी भारी
तेजस्वी यादव ने इस चुनाव में हर परिवार के लिए एक सरकारी नौकरी का वादा किया था. कई अन्य महत्वपूर्ण वादे भी किए गए, लेकिन नीतीश कुमार की ₹10,000 की योजना इन वादों पर भारी पड़ गई.
सीटों के बंटवारे का विवाद
महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे का विवाद अनसुलझा रहा. लगभग एक दर्जन सीटों पर दोस्ताना मुकाबले की चर्चा हुई, लेकिन अंततः यही बातें हावी रहीं.