Bihar Election 2025: बिहार के बांका जिले की बेलहर विधानसभा सीट एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार वजह कोई विकास योजना, शिक्षा सुधार या स्वास्थ्य क्रांति नहीं, बल्कि यहां की जाति आधारित राजनीति है। बेलहर की सियासत को जानने-समझने वाले जानकारों का कहना है कि यहां चुनाव विकास के वादों पर नहीं, बल्कि जातिगत समीकरणों पर लड़ा और जीता जाता है।
यहां की राजनीतिक जमीन इतनी जाति-केंद्रित है कि उम्मीदवार की योग्यता, छवि, एजेंडा या काम का कोई खास मतलब नहीं रह जाता। चौपालों पर भले ही शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य की चर्चा हो, लेकिन जब बारी वोट देने की आती है, तो सबसे पहले मतदाता उम्मीदवार की जाति पर नजर डालते हैं।
यादव फैक्टर: बेलहर की राजनीति का असली चेहरा
बेलहर में यादव समुदाय की जनसंख्या इतनी प्रभावशाली है कि पिछले दो दशकों में यहां से ज्यादातर यादव उम्मीदवार ही विजयी रहे हैं — चाहे वो राजद के हों या जेडीयू के। स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर उम्मीदवार यादव है, तो उसकी जीत लगभग तय मानी जाती है। यही कारण है कि पार्टियां यहां उम्मीदवार तय करते समय सबसे पहले जाति का गणित देखती हैं, न कि उसका जनसेवा का रिकॉर्ड।
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विकास की बातें, लेकिन जमीन पर सन्नाटा
बीजेपी की अब तक की विफलता
1962 में अस्तित्व में आने के बाद से अब तक बीजेपी यहां एक भी बार जीत दर्ज नहीं कर पाई है। पहले कांग्रेस का प्रभाव था, फिर 2000 के बाद राजद और जदयू ने बारी-बारी से सीट पर कब्जा जमाया। 2020 में जदयू के मनोज यादव ने यहां जीत हासिल की थी।
2025 की रणनीति: जाति पर ही दांव
बीजेपी को अब यह स्पष्ट हो गया है कि अगर बेलहर में चुनाव जीतना है, तो यादव उम्मीदवार ही मैदान में उतारना होगा। पार्टी अब ऐसे किसी प्रभावशाली यादव चेहरे की तलाश में है जो जातिगत समीकरणों को साध सके। साथ ही, यहां की मुस्लिम आबादी भी अहम भूमिका निभा सकती है। अगर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने उम्मीदवार उतारा, तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो सकता है, जिससे राजद को नुकसान हो सकता है।
बेलहर विधानसभा सीट बिहार की उन सीटों में से एक है जहां विकास, शिक्षा या रोजगार जैसे मुद्दे सिर्फ चुनावी भाषणों में गूंजते हैं, लेकिन असल में वोट जाति के आधार पर ही डाले जाते हैं। यहां जीत का रास्ता काम नहीं, जातीय पहचान से होकर गुजरता है।