Bihar Maholia Village Story: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे शुक्रवार, 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे. दो चरणों के वोटिंग के बाद अगर एग्जिट पोल की बात करें सभी में NDA बिहार में भारी जीत दिखते हुए नजर आ रही है. वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन की हालत फिलहाल खराब हो रखी है. वहीं इस बार बिहार में रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग हुई है.
दोनों चरणों में वोटर्स ने खासा उत्साह दिखाया और 65 फीसदी से अधिक वोट डाले गए. 2 चरणों में वोटिंग 6 और 11 नवंबर को कराई गई. राज्य में साल 1951 के बाद का सबसे अधिक 67.13 फीसदी वोटिंग हुई है.
अब इसी कड़ी में हम आपको बिहार के एक ऐसे गांव की जानकारी देंगे जहां पर कोई पुरुष नहीं रहता है. यहां पर हम बांका जिले के कटोरिया-बांका रोड पर स्थित महोलिया गांव की बात कर रहे हैं.
महोलिया गांव अपनी अनोखी पहचान
महोलिया गांव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां आपको कोई पुरुष नजर नहीं आएगा — क्योंकि लगभग सभी पुरुष कोलकाता में रसोइए (महाराज) के रूप में काम करते हैं. गांव में केवल महिलाएं और बच्चे ही रहते हैं, जो खेती-बाड़ी और घर-परिवार की जिम्मेदारी संभालते हैं.
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अपना घर छोड़ कहां चले गए सभी पुरुष?
करीब 45 घरों वाले इस छोटे से गांव के सौ से अधिक पुरुष कोलकाता में बसे हुए हैं. बंगाली परिवारों में भोज-भंडारे और पारिवारिक आयोजनों में महोलिया के महाराजों की बड़ी मांग रहती है. कोलकाता में इनकी ख्याति इतनी बढ़ गई है कि बिना “महालिया के महाराज” के आयोजन अधूरा माना जाता है. यह परंपरा कुछ लोगों से शुरू हुई थी, लेकिन काम और आमदनी अच्छी होने के कारण धीरे-धीरे पूरे गांव ने यही पेशा अपना लिया.
इन पुरुषों को कहा जाता है ‘महाराज’
कोलकाता में इन्हें स्नेहपूर्वक ‘महाराज’ कहा जाता है, और यही उपनाम अब उनकी पहचान बन गया है. गांव के हर व्यक्ति ने अपने नाम के साथ महाराज जोड़ लिया है — जैसे घनश्याम महाराज, सुखेदेव महाराज, माधो महाराज. दिलचस्प बात यह है कि रसोई बनाना उनकी जातिगत परंपरा नहीं थी, लेकिन आज यही उनका मुख्य व्यवसाय और सम्मान का प्रतीक बन चुका है.
कितनी हैं इनकी कमाई
इन महाराजों की मासिक आमदनी अनुभव और कुकिंग स्किल के आधार पर 10 से 20 हजार रुपये तक होती है. भोजन और रहने की सुविधा आमतौर पर आयोजकों के पास रहती है, जिससे खर्च कम होता है. सालभर में कुछ ही दिन ऐसे होते हैं जब काम नहीं मिलता. कई महाराजों ने तो अब कोलकाता में अपने घर भी बना लिए हैं और वहीं स्थायी रूप से रहने लगे हैं.
महिलाओं के हाथों गांव की जिम्मेदारी
महोलिया की महिलाएं गांव में पूरी जिम्मेदारी निभाती हैं. त्योहारों और खास मौकों पर ही पुरुष वापस आते हैं. इस तरह महोलिया गांव महाराजों का गांव बन चुका है, जिसकी पहचान पूरे कोलकाता तक फैली है.