भारत के मुगल युग में प्रेम-कहानी का एक ऐसा नाम है जिसे इतिहास-की किताबें नहीं बल्कि लोक-कहानियाँ समय के साथ सजाकर ले चलीं. अनारकली एक खूबसूरत तवायफ़ थीं, जिनकी़ सुगंध-सी उपस्थिति के बीच जन्मा था एक गहरा प्रेम-संग्राम. राजकुमार ने अनारकली से प्रेम किया, और यह प्रेम उस दौर की सामाजिक एवं राजनीतिक खामियों से टकराया. दरबार में जब यह संबंध उजागर हुआ, तो शक्ति-संदर्भ, मान-प्रतिष्ठा और श्रेणीगत भेद की राजनीति ने धर्म-भावनाओं को पीछे छोड़ दिया. फिर अनारकली को दी गई वो अत्याचार-सजा, मूल कथा के अनुसार दीवार में जिंदा दफन किया जाना, एक दर्दसंचयी मिथक बन गई. आज भी लाहौर में उनके नाम की मौज़ूद मकबरा-स्थल इस प्रेम-कथा की गूंज सुनाता है. इस कथानक में सिर्फ रोमांस नहीं बल्कि “स्वतंत्रता”, “किस्मत” और “सम्मान” की लड़ाई का मानवीय पहलू भी दिखता है. जिसमें हर पाठ हमें सिखाता है कि प्रेम, शक्ति और मानव-अधिकार कैसे एक-दूसरे से टकरा सकते हैं.
अनारकली” नाम का रहस्य
अनारकली नाम उर्दू-में “अनार की कली” मतलब-देंता है. इस नाम से यह संकेत मिलता है कि उन्होंने अपनी सुहावनी, उम्दा ख़ूबसूरती और ग्रेस से मुगल दरबार में खासी छाप छोड़ी.इस नामकरण-कथा से हमें यह समझ मिलता है कि कैसे एक तवायफ़-जिंदगी ने प्रतीक-रूप में मिसाल बनकर इतिहास और मिथक दोनों में जगह बनाई.
प्रेम-कहानी: राजकुमार सलीम से अनारकली तक
लोक-कथाएँ कहती हैं कि राजकुमार सलीम ने अनारकली को पहली-बार उनके नृत्य-प्रदर्शन के दौरान देखा और उनका प्रेम-बन्धन बना. इस प्रेम-रिश्ते ने दरबार-की सामाजिक सीमाओं और मान-प्रतिष्ठा की राजनीति को सीधा चुनौती दी. यह सिर्फ रोमांस नहीं था, बल्कि उस युग में “श्रेष्ठता”, “शक्ति” और “स्वीकृति” की जटिलता को उजागर करता है.
अकबर की नाराज़गी और आदेश
जब इस प्रेम-रिश्ते की भनक दरबार में पड़ी, तो सम्राट अकबर, जिन्होंने लालच और राजनीतिक संतुलन का ध्यान रखा था, जल उठे. कथाओं में कहा गया है कि उन्होंने अनारकली को दीवार में दफन-करने का आदेश दिया, ताकि यह शर्म-मुकद्दर का सबब न बने. इस निर्णय-कथा में हम दायित्व और शक्ति-खतरे के बीच की जटिलता को महसूस करते हैं, जहाँ व्यक्तिगत-भावनाएँ, शाही-कानून से टकराती हैं.
मौत-या-मुक्ति? कई रूपों में कथा
धार्मिक और ऐतिहासिक स्रोतों के अभाव में अनारकली की मृत्यु का सच विवादित है. कुछ कहानियों में वह दीवार में जिंदा दफन हुईं, तो कुछ में भाग गईं. यह बहुविवरणता स्वयं इस कथा-प्रतीक की शक्ति को दर्शाती है. जहाँ बदला-वजूद और यथार्थ-भावना एक-साथ चलते हैं.