Former CIA agent On PAK: अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए (CIA) के पूर्व अधिकारी जॉन किरियाको ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा है कि परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में, अमेरिका ने लाखों डॉलर देकर पाकिस्तान का सहयोग “खरीदा” था. एनआई से बात करते हुए किरियाको ने कहा कि, 2002 में पेंटागन का पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार पर नियंत्रण था क्योंकि मुशर्रफ को डर था कि ये हथियार आतंकवादियों के हाथों में पड़ सकते हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए उसे सैन्य और आर्थिक सहायता में लाखों डॉलर का निवेश किया.
क्या थी वाशिंगटन की बड़ी कूटनीतिक भूल?
किरियाको ने बताया कि सऊदी अरब के सीधे दबाव के कारण, अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक अब्दुल क़दीर ख़ान (ए.क्यू. ख़ान) को निशाना नहीं बनाया. उन्होंने कहा, “अगर हम इज़राइल की तरह काम करते, तो हम उन्हें आसानी से खत्म कर सकते थे क्योंकि हमें उनकी हर हरकत की जानकारी थी.” हालांकि, सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच घनिष्ठ संबंधों के कारण सऊदी सरकार ने अमेरिका से “ख़ान को अकेला छोड़ देने” का आग्रह किया. किरियाको ने इसे वाशिंगटन की एक कूटनीतिक भूल बताया जिसने अमेरिकी नीति को कमज़ोर कर दिया.
रिपोर्ट के अनुसार, अब्दुल क़दीर ख़ान का जन्म 1936 में भोपाल में हुआ था और वे 1952 में पाकिस्तान चले गए. बाद में वे पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक बने और 2021 में इस्लामाबाद में उनका निधन हो गया.
अमेरिका को थी भारत के पाक पर हमले की उम्मीद – किरियाको
किरियाको ने यह भी खुलासा किया कि 2001 के संसद हमले और 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद अमेरिका को उम्मीद थी कि भारत पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करेगा, लेकिन भारत ने संयम बरता. उन्होंने कहा कि सीआईए में इसे रणनीतिक धैर्य कहा जाता था, जो उस समय भारत की “परिपक्व विदेश नीति” का प्रतीक था. हालांकि, उन्होंने आगे कहा कि “भारत अब इस धैर्य को कमज़ोरी समझने की भूल नहीं कर सकता.”
#WATCH | On the question of fear of nuclear weapons falling into terrorists’ hands in Pakistan, ex-CIA Officer, John Kiriakou says, “When I was stationed in Pakistan in 2002, I was told unofficially that the Pentagon controlled the Pakistani nuclear arsenal, and that Parvez… pic.twitter.com/iaKPpixhMZ
— ANI (@ANI) October 24, 2025
मुशर्रफ ने अमेरिका के सामने किया दिखावा
किरियाको ने आगे कहा कि मुशर्रफ ने अमेरिका को पाकिस्तान में स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति दी और वह नियमित रूप से अमेरिका से मिलते रहे. उन्होंने बताया कि “अमेरिका तानाशाहों के साथ काम करना पसंद करता है क्योंकि तब जनमत या मीडिया का दबाव नहीं होता.” मुशर्रफ ने दोहरी रणनीति अपनाई—अमेरिका के साथ आतंकवाद-रोधी सहयोग का दिखावा करते हुए, उन्होंने अपनी सेना और कट्टरपंथियों को खुश रखने के लिए भारत-विरोधी गतिविधियां जारी रखीं.
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