Diabetes in children: आज कल कि बीमारियों ने उम्र देखना ही बंद कर दिया है. यह किसी भी उम्रदराज के लोगों पर हावी हो जा रहीं है. क्या बुढ़े और क्या बच्चे. आज हम एक उनमें से एक की बात करेंगे जिसका नाम है डायबिटीज, यह बीमारी पहले अधिकतर बुजुर्गों में देखी जाती थी लेकिन अब बच्चे भी इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं. यह सुनकर बहुत लोग हैरान हो सकते हैं पर यही सच है.
क्या है डायबिटीज?
डायबिटीज का मतलब है खून में शुगर का स्तर बहुत अधिक होना होता है और जब यह बहुत बढ़ जाता है, तो शरीर को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यह मुख्य रूप से दो तरह की होती है- टाइप 1 और टाइप 2
क्या है टाइप 1?
टाइप 1 डायबिटीज में शरीर का इंसुलिन बनाने वाला अंग पैंक्रियास ठीक से काम नहीं करता, इससे खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है.यह बीमारी ज्यादातर बच्चों और जवानों को होती है,इसके लक्षणों में बहुत ज्यादा प्यास लगना,बार-बार पेशाब का आना, कमजोर महसूस करना और वजन कम होना शामिल है. इसे सही ढंग से ठीक किया जा सकता है लेकिन दवाइयों और इंसुलिन का इंजेक्शन जरूरी है.अच्छा खानपान और नियमित जांच से इसे कंट्रोल किया जा सकता है,लेकिन जल्दी इलाज न होने पर यह खतरनाक हो सकती है.
क्या है टाइप 2?
टाइप 2 डायबिटीज में शरीर का इंसुलिन सही से काम नहीं करता है या शरीर ठीक से उसका इस्तेमाल नहीं कर पाता है, इससे खून में शुगर लेवल अधिक हो जाता है. यह अक्सर बड़ों को होता है, खासकर वजन अधिक होने पर भी होता है, लक्षण में ज्यादा थकान होना,बार-बार पेशाब आना, प्यास लगना और धुंधली दृष्टि भी हो सकती है. इस बीमारी को खानपान सही कर व्यायाम करके और दवाइयों से कंट्रोल किया जा सकता है. यदि समय पर इलाज न किया गया तो यह हृदय रोग, किडनी फेलियर जैसे खतरनाक रोगों का कारण बन सकती है.
कुछ मुख्य कारण हैं जिनसे बच्चे भी इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं:
मोटापा: आजकल बच्चे बहुत मोटे हो रहे हैं, मोटापा शरीर में इंसुलिन के प्रति रेसिस्टेंस बढ़ा देता है.
खराब खानपान: जंक फूड खाना,मीठा और प्रोसेस्ड फूड का सेवन करना यही सब खून में शगर का स्तर बढ़ाता है.
बैठक जीवनशैली: बच्चे ज्यादा टीवी देख रहे हैं,मोबाइल और वीडियो का ज्यादा इस्तेमाल करना, खेलने-कूदने का समय कम हो गया है, इससे भी यह बीमारी बढ़ रही है.
परिवारिक इतिहास: यदि घर में किसी को डायबिटीज़ है तो बच्चों का खतरा भी बढ़ जाता है
क्या लक्षण हैं?
⦁ बार-बार पेशाब आना.
⦁ बहुत प्यास लगना.
⦁ जल्दी थकान और कमजोरी.
⦁ देखने में धुंधलापन.
⦁ वजन कम होना.
कैसे करें बचाव?
⦁ अच्छा और पौष्टिक खाना खाएं और मीठा कम करें.
⦁ रोजाना थोड़ी बहुत एक्सरसाइज करें.
⦁ टीवी और मोबाइल का इस्तेमाल कम करें.
⦁ समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराएं
⦁ अपने वजन का ध्यान रखें.
बच्चों में यह बीमारी अब आम हो रही है, इसलिए हमें सावधान रहना चाहिए. सही खान-पान नियमित व्यायाम और जांच से इस बीमारी से बचा जा सकता है. यदि जल्दी पता चल जाए और इलाज सही हो तो बहुत बड़ी मुश्किल से बचा जा सकता है, अपने और अपने बच्चों का ध्यान रखें और स्वस्थ जीवन जिए.