Sex Toys vs Sex Doll: कभी ऐसा वक्त था जब ‘सेक्स टॉय’ (Sex Toy) शब्द सुनकर लोग झेंप जाते थे. समाज में इसे शर्म और मर्यादा से जोड़ दिया गया था. लेकिन, वक्त के साथ बातचीत, जागरूकता और खुलेपन ने इस विषय को सामान्य बनाया. अब मेट्रो शहरों में इस पर खुलकर बात होती है और छोटे शहर भी धीरे-धीरे इस बातचीत का हिस्सा बन रहे हैं.
2013 में आई फिल्म Her याद है? जिसमें जोआक्विन फीनिक्स एक एआई वॉयस से प्यार कर बैठता है. तब यह साइंस फिक्शन जैसा लगा था, लेकिन आज लोग वाकई एआई चैटबॉट्स से इमोशनल रिश्ता बना रहे हैं. अब तो Companion जैसी फिल्में भी यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या भविष्य में सेक्स डॉल्स हमारे जीवन का हिस्सा बन सकती हैं?
भारत में सेक्स डॉल्स मिलती हैं, लेकिन उनकी कानूनी स्थिति अब भी अस्पष्ट है. कानून उन्हें सीधे तौर पर प्रतिबंधित नहीं करता, बस इतना कहता है कि उन्हें ‘अश्लील’ तरीके से प्रचारित या प्रदर्शित नहीं किया जाना चाहिए. यही वजह है कि कई ऑनलाइन कंपनियां इन्हें “मसाजर” या “कंफर्ट डॉल” जैसे नामों से बेचती हैं. बाजार है, बस चुपचाप और एक ग्रे ज़ोन में.
सेक्स टॉय और सेक्स डॉल में फर्क
सेक्स टॉय को कपल्स आमतौर पर अपनी अंतरंगता को बढ़ाने का जरिया मानते हैं, जबकि सेक्स डॉल भावनात्मक सीमाओं को छूती है. मनोचिकित्सक का मानना है कि, “सेक्स टॉय रिश्ते में एक साझा अनुभव हो सकता है, लेकिन सेक्स डॉल व्यक्ति की निजी कल्पना का प्रतीक होती है. यह किसी तीसरे भावनात्मक अस्तित्व जैसी लग सकती है.”
अगर किसी को अपने पार्टनर के पास सेक्स डॉल मिले, तो असहज महसूस होना स्वाभाविक है. लेकिन इसे धोखा मानना जरूरी नहीं. कई लोग इसे जिज्ञासा, कल्पना या आत्मविश्वास की कमी के चलते आजमाते हैं. असली मुद्दा पारदर्शिता और बातचीत का है, “यह तुम्हारे लिए क्या मायने रखता है?” पूछना, नाराज होने से बेहतर है. रिश्तों में सीमाएं तय करने का मतलब नियंत्रण नहीं, बल्कि भावनात्मक सुरक्षा है.
संवाद, सहमति और समझ से ही बनाए रख सकते हैं स्वस्थ रिश्ता
कह सकते हैं, भविष्य की नज़दीकियों को तकनीक नया रूप दे रही है और हमें तय करना होगा कि इस बदलाव को अपनाना है या डरना.