प्रजनन स्वास्थ्य केवल बच्चे पैदा करने या न करने का मामला नहीं है, बल्कि यह इस बात से जुड़ा है कि हम अपनी ज़िंदगी और भविष्य को कैसे नियंत्रित करना चाहते हैं. इसमें दो सबसे महत्वपूर्ण पहलू आते हैं. कांट्रेसेप्शन और उर्वरता जांच. कांट्रेसेप्शन साधन हमें परिवार-योजना का अवसर देते हैं, जिससे हम अपने जीवन की जरूरतों और प्राथमिकताओं के अनुसार निर्णय ले सकें. वहीं उर्वरता जांच यह सुनिश्चित करती है कि यदि हम भविष्य में बच्चा चाहें, तो हमारे शरीर की क्षमता ठीक है. दुर्भाग्य से समाज में इन दोनों विषयों को लेकर बहुत सारी गलत धारणाएँ और मिथक मौजूद हैं. यही वजह है कि कई लोग डर और भ्रम के कारण सही जानकारी से दूर रहते हैं. आइए विस्तार से समझते हैं कि इनका महत्व क्या है और मिथकों की सच्चाई क्या है.
कांट्रेसेप्शन का महत्व
गर्भनिरोधक साधन जैसे कंडोम, गर्भनिरोधक गोलियाँ, इंजेक्शन, इम्प्लांट और IUD आज के समय में परिवार-योजना का सबसे विश्वसनीय तरीका हैं. ये साधन न केवल अवांछित गर्भधारण से बचाते हैं बल्कि महिला और पुरुष दोनों को मानसिक शांति और सुरक्षा का एहसास देते हैं. गर्भनिरोधक का उपयोग करने का अर्थ है कि आप अपने भविष्य और जीवन की योजना पर नियंत्रण रखते हैं. उदाहरण के लिए, पढ़ाई या नौकरी के दौरान यदि दंपति बच्चा नहीं चाहते, तो यह उन्हें समय और तैयारी देता है. साथ ही, कंडोम जैसे साधन यौन संचारित रोगों से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं, जो केवल गर्भधारण रोकने से आगे का लाभ है.
उर्वरता जांच की जरूरत
बहुत से लोग मानते हैं कि उर्वरता की जांच केवल तभी करनी चाहिए जब गर्भधारण में समस्या हो. लेकिन सच्चाई यह है कि समय-समय पर उर्वरता जांच कराना स्वास्थ्य के लिहाज़ से बेहद उपयोगी है. महिलाओं के लिए यह जांच अंडाशय के स्वास्थ्य, हार्मोन लेवल और गर्भाशय की स्थिति को समझने में मदद करती है. पुरुषों के लिए शुक्राणु की संख्या और गुणवत्ता की जांच आवश्यक होती है. यदि किसी को शुरू से समस्या का पता चल जाए तो इलाज जल्दी शुरू हो सकता है, जिससे आगे चलकर तनाव और आर्थिक बोझ दोनों से राहत मिलती है.
मिथक: गर्भनिरोधक से स्थायी बांझपन हो जाता है
यह सबसे बड़ा और आम मिथक है, जिसकी वजह से कई लोग गर्भनिरोधक साधनों का उपयोग करने से डरते हैं. हकीकत यह है कि गर्भनिरोधक का उपयोग बंद करने के बाद महिला और पुरुष दोनों की प्रजनन क्षमता सामान्य हो जाती है. उदाहरण के लिए, गर्भनिरोधक गोलियाँ बंद करने के 2–3 महीनों में सामान्य चक्र लौट आता है.