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Govardhan Puja 2025 : गोवर्धन पूजा अहंकार पर विजय और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का पर्व

Govardhan Puja 2025 : दीपावली के दूसरे दिन, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भक्ति, प्रकृति-संरक्षण और विनम्रता का संदेश देने वाला उत्सव है.

By: Pandit Shashishekhar Tripathi | Published: October 17, 2025 1:14:05 PM IST



Govardhan Puja 2025 : दीपावली के दूसरे दिन, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भक्ति, प्रकृति-संरक्षण और विनम्रता का संदेश देने वाला उत्सव है. यह पर्व श्रीकृष्ण की उस दिव्य लीला का स्मरण कराता है, जिसमें उन्होंने देवता इन्द्र के गर्व को चूर करते हुए धरती, गौ और मानवता की रक्षा की. चलिए जानते हैं क्या कहना है Pandit Shashishekhar Tripathi का 

 श्री कृष्ण की प्रेरणा और गोवर्धन लीला

द्वापर युग में ब्रजवासी प्रत्येक वर्ष इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए छप्पन भोगों से पूजा करते थे. परंतु जब श्रीकृष्ण ने देखा कि यह पूजा भयवश और अहंकार से प्रेरित है, तो उन्होंने गोपों से कहा-

“वास्तविक देवता तो हमारी गौ माता हैं, जो हमें दूध देती हैं और यह गोवर्धन पर्वत है, जो हमारी गोचर भूमि का रक्षक है. अतः पूजन इन्हीं का होना चाहिए.”

गोपों ने श्रीकृष्ण की आज्ञा से गोवर्धन पर्वत की पूजा की. श्रीकृष्ण स्वयं गोवर्धन रूप में प्रकट होकर सबके प्रेम और भोग को स्वीकार करने लगे. जब यह समाचार इन्द्र तक पहुँचा तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने व्रजभूमि पर निरंतर वर्षा कर दी.

 गोवर्धन धारण: संरक्षण की दिव्य प्रतीक लीला

अतिवृष्टि से जब सम्पूर्ण व्रज डूबने लगा, तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सम्पूर्ण ब्रजवासियों, गौओं और प्राणियों को आश्रय दिया. सात दिन तक ब्रजवासी उस पर्वत के नीचे सुरक्षित रहे. अंततः इन्द्र को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा माँगी. यह लीला केवल शक्ति का नहीं, संरक्षण और संतुलन का संदेश देती है. जब भी अहंकार प्रकृति या मानवता पर हावी होता है, तब ईश्वरीय शक्ति उसके विरोध में खड़ी होती है.

गोवर्धन पूजा का प्रतीकात्मक अर्थ

इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर उसकी पूजा की जाती है. घर-घर में “अन्नकूट” (भोजन पर्व) मनाया जाता है, जिसमें विविध व्यंजनों का भोग भगवान को अर्पित किया जाता है. इस पूजन में गौमाता की भी विशेष आराधना की जाती है क्योंकि गौ माता न केवल अन्न व धन की दात्री हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति का आधार भी हैं. श्रीकृष्ण ने स्वयं यह परंपरा इसलिए आरंभ की थी कि मनुष्य केवल देवताओं के भय से पूजा न करे, बल्कि प्रकृति, पशु-पक्षी और भूमि के प्रति कृतज्ञता की भावना रखे.

 गोवर्धन परिक्रमा का महात्म्य

शास्त्रों में कहा गया है- “गिरिराजस्य परिक्रमया सहस्र तीर्थफलमाप्यते.” अर्थात जो भक्त गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा करता है, वह सहस्त्र तीर्थों का पुण्य एक साथ प्राप्त करता है. गोवर्धन की परिक्रमा मनुष्य को विनम्रता, धैर्य और समर्पण का पाठ सिखाती है. यह यात्रा बाह्य नहीं, बल्कि आंतरिक परिक्रमा है, जिसमें हम अपने अहंकार को त्याग कर प्रभु की शरण में आते हैं.

 गोवर्धन पूजा का संदेश

गोवर्धन पूजा का संदेश युगों से एक ही रहा है.”अन्न का आदर करो, गौ की सेवा करो और अहंकार का त्याग करो.”  जब मनुष्य अपने भीतर से अहंकार का भार उतार देता है, तभी जीवन में सच्चा गोवर्धन (ऊँचा उठना) होता है. इस कार्तिक प्रतिपदा पर, हम सब मिलकर यही संकल्प लें कि प्रकृति, गौ और मानवता की रक्षा हमारा धर्म है और विनम्रता ही ईश्वर तक पहुँचने का सच्चा मार्ग है.

“जय श्री गोवर्धनधारी श्रीकृष्ण.”

 “गिरिराज महाराज की जय.”

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