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Cheese Alert! आपके पनीर में छुपे हैं माइक्रोप्लास्टिक? जानें सेहत पर क्या पड़ता है असर

Cheese Microplastics Study: हाल ही में हुई स्टडी में पता चला कि पनीर और अन्य डेयरी प्रोडक्ट्स में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं. ताजे पनीर में कुछ पार्ट्स मिले हैं. चलिए जानते हैं इसका सेहत पर क्या असर पड़ता है.

By: Shraddha Pandey | Published: October 17, 2025 9:26:29 AM IST



Dairy Products Microplastics: आजकल माइक्रोप्लास्टिक (microplastics) एक बड़ी स्वास्थ्य चिंता बनते जा रहे हैं. ये छोटे-छोटे प्लास्टिक कण होते हैं, जो आमतौर पर 5 मिलीमीटर से भी छोटे होते हैं. ये बोतलें, फूड कंटेनर और अन्य रोजमर्रा की प्लास्टिक चीज़ों से टूटकर बनते हैं और धीरे-धीरे हमारे खाने और पानी में शामिल हो जाते हैं. शोध से पता चला है कि ये माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर में लगभग हर अंग तक पहुंच सकते हैं- चाहे वो लीवर हो, पेट या खून की नसें.

हाल ही में इटली की पाडुआ यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन किया, जिसे NGP फूड जर्नल में 10 जुलाई को प्रकाशित किया गया. इस अध्ययन में उन्होंने 28 अलग-अलग डेयरी उत्पादों का परीक्षण किया, जिनमें दूध और विभिन्न प्रकार के पनीर शामिल थे. शोध में पता चला कि इनमें से केवल दो उत्पाद ही माइक्रोप्लास्टिक से मुक्त थे.

दिलचस्प बात यह है कि पनीर में दूध की तुलना में ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक पाए गए. दूध में प्रति किलोग्राम लगभग 350 कण पाए गए, जबकि पनीर में यह संख्या 1,000 प्रति किलोग्राम थी. आमतौर पर ये कण PET, पॉलीएथलीन और पॉलीप्रोपलीन जैसे प्लास्टिक से आते हैं, जो अक्सर पैकेजिंग से जुड़े होते हैं. इसके अलावा, फार्म की मशीनरी, पशु चारे और प्रोसेसिंग उपकरण भी इसे पैदा करने में योगदान कर सकते हैं.

हर प्रोडक्ट में अलग होती है माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा

शोध में यह भी पाया गया कि पनीर के प्रकार के हिसाब से माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा अलग-अलग होती है. ताजे पनीर जैसे मॉजरेला, पनीर और रिकोटा में लगभग 1,280 कण प्रति किलोग्राम पाए गए, जबकि एज्ड या परिपक्व पनीर जैसे चेडर, गौडा और पार्मेसन में यह संख्या बढ़कर 1,857 कण प्रति किलोग्राम हो जाती है.

मानव शरीर में माइक्रोप्लास्टिक

मानव शरीर में माइक्रोप्लास्टिक के प्रवेश से सूजन, हार्मोन असंतुलन, लीवर और आंत की समस्या, मानसिक स्वास्थ्य पर असर और लंबी अवधि में कैंसर, बांझपन, हृदय और फेफड़ों की बीमारी जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. इस अध्ययन से साफ है कि डेयरी उत्पादों में माइक्रोप्लास्टिक का खतरा मौजूद है. इसे कम करने के लिए पैकेजिंग, प्रोसेसिंग और फूड हैंडलिंग पर ध्यान देना जरूरी है.

Disclaimer : प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. inkhabar इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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