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Govardhan Puja 2025: कब और कैसे हुई गोवर्धन पूजा की शुरुआत, यहां जानें तिथि और शुभ मुहूर्त

Govardhan Puja 2025: वैदिक पंचांग के अनुसार रोशनी का त्योहार कार्तिक माह में धनतेरस से शुरू होता है. वहीं यह त्योहार भाई दूज के दिन समाप्त होता है. गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2025) का त्योहार दिवाली (Diwali 2025) के अगले दिन मनाया जाता है. क्या आप जानते हैं इस त्यौहार की शुरुआत कैसे हुई? अगर आप नहीं जानते तो आइए जानते हैं इसकी खास वजह के बारे में.

By: Shivashakti Narayan Singh | Last Updated: October 14, 2025 8:25:03 PM IST



Govardhan Puja 2025: वैदिक पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है. यह त्यौहार मथुरा सहित पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस शुभ अवसर पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा है और 56 भोग लगाए जाते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन पूजा करने से भक्त को सभी दुखों से मुक्ति मिलती है और भगवान कृष्ण का आशीर्वाद मिलता है. ऐसे में आइए इस लेख में पढ़ें गोवर्धन पर्वत की कथा (Govardhan Puja 2025).

गोवर्धन पूजा 2025(Govardhan Puja 2025) तिथि और शुभ मुहूर्त

  • वैदिक पंचांग के अनुसार इस बार गोवर्धन पूजा का त्योहार 22 अक्टूबर (Kab Hai Govardhan Puja 2025) को मनाया जाएगा.
  • कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि आरंभ- 21 अक्टूबर शाम 05:54 बजे
  • कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि समाप्त – 22 अक्टूबर को रात्रि 08 बजकर 16 मिनट पर
  • इस दिन पूजा करने का शुभ समय सुबह 06 बजकर 20 मिनट से 08 बजकर 38 मिनट तक है. दूसरा मुहूर्त दोपहर 03:13 बजे से शाम 05:49 बजे तक है. ब्रह्म मुहूर्त – प्रातः 04:45 बजे से प्रातः 05:35 बजे तक
  • विजय मुहूर्त- दोपहर 01:58 बजे से 02:44 बजे तक
  • गोधूलि बेला – शाम 05:44 बजे से शाम 06:10 बजे तक
  • अमृत काल- शाम 04:00 बजे से शाम 05:48 बजे तक

गोवर्धन पूजा कथा (Govardhan Puja Katha)

गोवर्धन पर्वत का वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में मिलता है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय था जब इंद्रदेव को अभिमान हो गया था, ऐसे में भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव का अभिमान तोड़ने के लिए एक लीला रची. एक दिन सभी ब्रजवासी पूजा की तैयारी कर रहे थे और भोग लगाने के लिए तरह-तरह के पकवान बना रहे थे. ऐसे में भगवान श्री कृष्ण ने माता यशोदा से पूछा कि ये सभी ब्रजवासी किसकी तैयारी कर रहे हैं. तो उन्होंने बताया कि इंद्र देव पूजा की तैयारी कर रहे हैं. भगवान श्री कृष्ण ने अपनी मां से पूछा कि वह इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रही हैं. उन्होंने आगे बताया कि इंद्रदेव की बारिश से भरपूर फसल होती है. भगवान ने कहा कि वर्षा करना इन्द्र का कर्तव्य है. यदि पूजा ही करनी है तो गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि वहीं पर हमारे चरागाह हैं.इसके बाद सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. इससे इंद्रदेव क्रोधित हो गए और बारिश करने लगे, जिससे इंद्रदेव के क्रोध से बचने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और पर्वत के नीचे शरण ली. इसके बाद इंद्र देव को अपनी गलती का एहसास हुआ. तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा होने लगी.

Disclaimer : प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. inkhabar इसकी पुष्टि नहीं करता है

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