Home > विदेश > Taliban Pakistan clashes: कभी था बड़ा सहयोगी, आज चुन-चुनकर पाक सैनिकों को उतार रहा मौत के घाट; जानिए- क्या है इस संघर्ष की इनसाइड स्टोरी?

Taliban Pakistan clashes: कभी था बड़ा सहयोगी, आज चुन-चुनकर पाक सैनिकों को उतार रहा मौत के घाट; जानिए- क्या है इस संघर्ष की इनसाइड स्टोरी?

Afghanistan border conflict: अफगान बलों ने हेलमंद, कंधार, ज़ाबुल, पक्तिका, पक्तिया, खोस्त, नंगरहार और कुनार प्रांतों में पाकिस्तानी चौकियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है.

By: Shubahm Srivastava | Last Updated: October 13, 2025 8:21:08 AM IST



Taliban Pakistan Clashes: अफगानिस्तान और पाकिस्तान एक बार फिर से एक भीषण संघर्ष की तरफ बढ़ते हुए दिख रहे हैं. अब इसी कड़ी में अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत में तालिबान लड़ाकों द्वारा राजधानी काबुल सहित अफगान क्षेत्र में पाकिस्तानी हवाई हमलों का जवाब देने के बाद डूरंड रेखा पर पाकिस्तानी सेना की चौकियों पर बड़ा हमला किया है. इस हमले में बड़ी तादाद में पाक सैनिकों के मारे जाने की खबर सामने आई है. तालिबान अधिकारियों की माने तो रात भर की उनकी जवाबी कार्रवाई में 58 पाकिस्तानी सैनिक को मारे गए हैं. 

हाल ये हो गया है कि तालिबान से जान बचाने के लिए पाक सैनिक अपनी चौकिया छोड़कर भाग गए हैं. इस अभियान के दौरान अफगान बलों ने कई पाकिस्तानी सैन्य चौकियों पर भी कब्जा कर लिया और हथियार व गोला-बारूद जब्त कर लिया.

हवाई हमलों का पाक को मिल जवाब

बता दें कि काबुल और पक्तिका प्रांतों में पाकिस्तान के हालिया हवाई हमलों के बाद जवाबी कार्रवाई करते हुए, अफगान बलों ने हेलमंद, कंधार, ज़ाबुल, पक्तिका, पक्तिया, खोस्त, नंगरहार और कुनार प्रांतों में पाकिस्तानी चौकियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है. ये सभी प्रांत पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर स्थित हैं.

तालिबान ने खारिज किए पाक के आरोप

अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी ने भारत में एक बयान में पाकिस्तान के इस आरोप को खारिज कर दिया कि तालिबान तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को पनाह देता है. मुत्ताक़ी ने कहा कि टीटीपी के सदस्य वास्तव में पाकिस्तानी शरणार्थी हैं, आतंकवादी नहीं, और यह संघर्ष पाकिस्तान की आंतरिक समस्या है. उन्होंने इस्लामाबाद पर अपने नागरिकों को विश्वास में न लेने का भी आरोप लगाया.

तालिबान की वापसी के कारण टीटीपी फिर से उभर आया है. यह संगठन पाकिस्तान में इस्लामी कानून की अपनी सख्त व्याख्या लागू करना चाहता है, और हाल के वर्षों में इसके हमलों में काफ़ी वृद्धि हुई है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों में तालिबान पर टीटीपी को “सैन्य और संचालनात्मक” सहायता प्रदान करने का आरोप लगाया गया है, जबकि अफगान इस तथ्य से इनकार करता है.

कहां से आया टीटीपी?

टीटीपी, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने 2011 से अल-कायदा से जुड़े आतंकवादी संगठन के रूप में सूचीबद्ध किया है, का लक्ष्य पाकिस्तान की सरकार को उखाड़ फेंकना और इस्लामी कानून की अपनी सख्त व्याख्या लागू करना है. अनुमानित 30,000 से 35,000 सदस्यों वाले इस समूह ने लगभग दो दशकों से खूनी अभियान चलाया है, जिसमें सैकड़ों सैनिक, पुलिसकर्मी और नागरिक मारे गए हैं. पाकिस्तान के सैन्य अभियानों, जिनमें ऑपरेशन ज़र्ब-ए-अज़्ब और रद्द-उल-फ़साद शामिल हैं, ने एक समय इस समूह को विभाजित कर दिया था और इसके नेताओं को अफगानिस्तान में धकेल दिया था. लेकिन काबुल में तालिबान की जीत ने टीटीपी को फिर से सक्रिय कर दिया है, जिसने तब से अपने गुटों को फिर से एकजुट किया है और हमलों में तेज़ी ला दी है.

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कभी दोनों थे घनिष्ठ सहयोगी

कभी घनिष्ठ सहयोगी रहे पाकिस्तान और तालिबान के बीच संबंध तेज़ी से बिगड़े हैं. पाकिस्तान 1990 के दशक से तालिबान का समर्थन करता रहा है.अमेरिकी आक्रमण के बाद, पाकिस्तान ने तालिबान को फिर से संगठित होने में मदद की, सुरक्षित पनाहगाह और चिकित्सा सहायता प्रदान की, जिससे युद्धक्षेत्र में भारी नुकसान के बावजूद आंदोलन टिक पाया. लेकिन 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी ने स्थिति बदल दी है. तालिबान अब पाकिस्तान पर निर्भर नहीं हैं और घरेलू वैधता हासिल करने के लिए उससे दूरी बना रहे हैं.

परिणामस्वरूप, दोनों देशों के बीच संबंध गहरे अविश्वास में डूबे हुए हैं. सीमा पार हिंसा बढ़ रही है, और डूरंड रेखा एक बार फिर संघर्ष का प्रतीक बन गई है, जहां कोई भी पक्ष स्थायी शांति के लिए इसे जोखिम में डालने को तैयार नहीं है.

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