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5 बार नॉमिनेशन लेकिन कभी नहीं मिला पुरस्कार, जानें Mahatma Gandhi को क्यों नहीं मिला नोबेल पीस प्राइज

Nobel Peace Prize:महात्मा गांधी को 5 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, लेकिन फिर भी उन्हें ये पुरस्कार क्यों नहीं दिय़ा गया?

By: Divyanshi Singh | Published: October 10, 2025 2:45:48 PM IST



Nobel Peace Prize: महात्मा गांधी जिन्हें विश्व शांति के सबसे बड़े प्रेरणास्रोतों में गिना जाता है.  महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को शांति का नोबेल नहीं दिए जाने को भी एक बड़ी गलती माना जाता है. गांधी को कई बार इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया. एक ऐसे व्यक्ति को यह पुरस्कार न देना जिसके विचारों को अल्बर्ट आइंस्टीन, नेल्सन मंडेला से लेकर मार्टिन लूथन किंग जैसे महान लोगों ने सराहा और फॉलो किया एक बड़ी चूक थी. इसे लेकर नोबेल शांति पुरस्कार कमेटी के अध्यक्ष रहे इतिहासकार गेयर लुंडेस्टाड (Geir Lundestad) ने भी कहा था कि महात्मा गांधी को सम्मान नहीं देना नोबेल इतिहास की सबसे बड़ी भूल थी. तो चलिए जानते हैं महात्मा गांधी को कब-कब नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) के लिए नामांकित किया गया और उन्हे ये पुरस्कार क्यों नहीं दिया गया.

पहली नामांकन (1937)

गांधी को पहली बार 1937 में नॉर्वेजियन संसद सदस्य ओले कोलबजॉर्नसेन ने नामांकित किया था. उस समय पैनल के कुछ सदस्यों ने गांधी की आलोचना की कि वे लगातार अहिंसावादी नहीं थे. उनकी गैर-हिंसात्मक आंदोलनों में भी कई बार हिंसा हुई, जैसे कि 1922 में चूरी चौरा कांड, जहां प्रदर्शनकारियों ने पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी. आलोचकों ने यह भी कहा कि गांधी के विचार और आदर्श मुख्यतः भारतीय संदर्भ के थे और उनका सार्वभौमिक महत्व नहीं था.

दूसरी और तीसरी नामांकन (1938 और 1939)
ओले कोलबजॉर्नसेन ने गांधी को 1938 और 1939 में फिर से नामांकित किया. लेकिन तब भी गांधी की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया और उन्हें पुरस्कार नहीं मिला.

चौथी नामांकन (1947)
स्वतंत्रता के ठीक पहले 1947 में गांधी को फिर से नामांकित किया गया और वे छह नामांकित व्यक्तियों की सूची में शामिल थे. लेकिन भारत-पाकिस्तान विभाजन और उस समय की राजनीतिक अशांति के कारण समिति के सदस्य गांधी को पुरस्कार देने में हिचक रहे थे.

पांचवीं नामांकन (1948)
गांधी की अंतिम नामांकन उनकी हत्या से कुछ दिन पहले 1948 में हुई. इस बार छह नामांकन पत्र नोबेल समिति को भेजे गए जिनमें से कुछ पत्र उन पूर्व पुरस्कार विजेताओं द्वारा भेजे गए थे. लेकिन किसी को भी मरने के बाद नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया था. उस समय लागू नोबेल फाउंडेशन के नियमों के अनुसार, कुछ परिस्थितियों में पुरस्कार मरणोपरांत प्रदान किए जा सकते हैं.

नॉर्वे नोबेल इंस्टीट्यूट के तत्कालीन निदेश, ऑगस्ट शू ने स्वीडिश पुरस्कार देने वाली संस्थाओं से उनकी राय पूछी. उत्तर नकारात्मक थे क्योंकि उनका मानना ​​था कि मरणोपरांत पुरस्कार तब तक नहीं दिया जाना चाहिए जब तक कि समिति के निर्णय के बाद पुरस्कार विजेता की मृत्यु न हो जाए.

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